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नवी मुंबई की निवासी 20-वर्षीय श्रुति 'रोसी डोर्फ़मैन' दुर्लभ बीमारिसे पीड़ित थी

मुंबई : नवी मुंबई की रहने वाली 20-वर्षीय युवती श्रुति 20 दिनों से धुंधली दृष्टि, दाईं आंख में एसोट्रॉपिया (एक तरह का स्ट्रेबिस्मस जिसमें एक या दोनों आंखें भीतर की ओर घुमती जाती हैं), डिपलोपिया (एक ही वस्तु की एक साथ दो छाया दिखता प्रतीत होना जो क्षैतिज, लंबवत, विकर्णवत विस्थापित हो सकती हैं) और सिरदर्द की शिकायत थी। अपोलोहॉस्पिटल्स  नवी मुंबई में बेसिक विजुअलइवेल्युएशन करने के बाद पता चला कि वो अपनी दायीं आंख से पढ़ने या चेहरे पहचान पाने में असमर्थ है। इस बीमारी के शिकार मरीजों में मैसिव लिम्फाडेनोपैथी (ऐसी गांठें जो आकार व संगतता में असामान्य होती हैं) के साथ-साथ कुछ शारीरिक लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे कि बुखार, न्यूट्रोफिलिया, ल्यूकोसाटोसिस, रेज्ड ईएसआर व पॉलीक्लोनल गैम्मोपैथी। उसकी तुरंत एमआरआई जांच की गयी जिससे इनफिल्ट्रेटिंग एन्हैंसिंग सॉफ्ट टिश्यू मास लीशन का पता चला। इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री के साथ-साथ सीटी गाइडेड बायोप्सी की गयी। इसके बाद डायग्नोसिस की पुष्टि हुई और पता चला कि उसे रोसी डोर्फ़मैन बीमारी (IHC: S-100, CD-68 एक्सप्रेस्ड) है। यह अत्यंत असामान्य किस्म की बीमारी है जिसके 1969 के बाद दुनिया भर में दर्ज मामले संभवत:1000 से भी कम हैं।
अपोलो हॉस्पिटल ग्रुप के अंकोलॉजी के डायरेक्टर और हेड व नेक कैंसर के स्पेशलिस्ट, डॉ. अनिल डीक्रुज ने बताया, ''सीटी गाइडेड बायोप्सी करने के बाद, हमें स्पष्ट रूप से समस्या का पता चला। जहां तक मेरी जानकारी है, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यह इस तरह का मात्र चौथा दर्ज मामला है। यह बीमारी सामान्य तौर पर किसी भी उम्र के पुरुष या महिला को प्रभावित करती है और पुरुषों की तुलना में महिलाएं इससे ज्यादा प्रभावित होती हैं, लेकिन यह सबसे अधिक 20 वर्ष से कम उम्र वालों को प्रभावित करती है। इस केस में, मरीज को दो हफ्ते से अधिक समय से लगातार सिर में दर्द और विकृत द्विदृष्टि की शिकायत थी और यह स्थिति और भी अधिक बिगड़ सकती थी।
अपोलो हॉस्पिटल के कन्सल्टेंट, मेडिकल अंकोलॉजी, डॉ. सलिल पाटकर ने भी बताया, ''यद्यपि रोसी डोर्फ़मैन (आरडीडी) बीमारी को एक मामूली विकार माना जाता है, लेकिन कभी-कभी यह आक्रामक रूप ले सकता है और गंभीर रुग्णता (जैसा कि हमारा केस है) व मर्त्यता की स्थिति भी आ सकती है। रोसी डोर्फ़मैन बीमारी के उपचार को लेकर सर्वसम्मति या दिशानिर्देश नहीं है। यह लक्षणहीन हो सकती है, चूंकि लगभग 50 प्रतिशत मामलों में यह बीमारी खुद ब खुद ठीक हो जाती है, हालांकि हमारे पास वो विकल्प नहीं था, क्योंकि स्थायी दृष्टिहीनता और इंट्राक्रेनियल एक्सटेंशन का गंभीर खतरा था। उपयुक्त स्थिति में, सर्जरी और रेडिकल रेसेक्शन उपचार को प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि, बीमारी की जगह व इसकी गंभीरता को देखते हुए, हमारे केस में वो संभव नहीं था। आरडीडी के उपचार के लिए कोई विशिष्ट दवा नहीं है। इस बीमारी के लिए कॉर्टिकॉस्टेरॉयड्स (प्रेडनीसोलोन), विंका अल्कलॉयड के साथ केमोथेरेपी व 5FU, लो-डोज इंटरफेरॉन, व एंटीबायटिक उपचार का विकल्प है। हमारे मरीज़ को स्टेरॉयड्स शुरू किया गया और शानदार प्रतिक्रिया दिखी।

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