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काफी विरोध के बाद फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली की पद्मावत सिनेमाघरों तक आ गयी । फिल्म का ज़ोरदार विरोध हुआ, विवाद हुआ सो जिज्ञासावश  लोग सिनेमा देखने का मन जरूर बनाएंगे ।  


 विरोध का कारण था कि रोमांस का नया अध्याय गढ़ने वाले निर्देशक भंसाली अपनी फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती के बीच प्रेम प्रसंग डालकर वर्तमान पीढ़ी जो पाश्चात्य रंग में ढलकर कल्पनामयी संसार में जी रही है उनको रिझाने के लिए इतिहास के पन्नों के साथ छेड़छाड़ की गयी है । खैर फिल्म में दोनों पात्र एक साथ नही दिखे तो प्रेमालाप संभव ही नही हुआ । या हो सकता है राजपूतों के आक्रोश को देखकर भंसाली के दिमाग से प्रेम प्रसंग का भूत उतर गया हो ।

 इस ऐतिहासिक फिल्म में एक अभिमानी , ऐय्याश , क्रूर अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली की सल्तनत का बादशाह है जो दुनिया के हर नायाब चीज को अपनी ज़ागीर समझता है और उसे हासिल करता है । 

दूसरी तरफ चित्तौड़ के वीर स्वाभिमानी राजा रावल रतनसिंह की दूसरी रानी पद्मावती सुन्दरता की मूर्ति के साथ बुद्धिमान भी है जिसके साथ उन्होंने प्रेमविवाह किया है ।

 चित्तौड़ के आचार्य को उनके कुदृष्टि के कारण पद्मावती के आदेशानुसार महाराजा देश निकाला घोषित करते हैं तो आचार्य अपमान की आग में जलते हुए सुल्तान खिलजी के समक्ष रानी पद्मावती की ख़ूबसूरती का गुणगान करता है और कहता है कि जब तक सुल्तान चित्तौड़ की महारानी को हासिल नहीं कर लेता तब तक पूरी हिंदुस्तान में शासन करने से वंचित रहेगा । हवसी खिलजी रूपवती पद्मावती को पाने की लालसा में अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ पर हमला करता है मगर उसे शिकस्त मिलता है । खिलजी पर रानी का जुनून सवार रहता है फिर वह छल से  महाराजा रतनसिंह को बंदी बनाकर दिल्ली  ले जाता है और पद्मावती की मांग रखता है । रानी पद्मावती बड़ी चालाकी से रतनसिंह को खिलजी के चंगुल से आज़ाद करा लेती है ।

खिलजी पहले से और ज्यादा आक्रामक होकर चित्तौड़ पर चढाई करता जिसमें महाराजा रावल रतनसिंह वीरगति को प्राप्त करते हैं तथा पद्मावती आबरू को लूटने से बचाने के लिए अपने राज्य की हजारों महिलाओं के साथ जौहर यानि सती हो जाती हैं ।

 भंसाली की यह फिल्म सुस्त और कमजोर है , इतिहास की जानकारी के हिसाब से ही फिल्म देखा जा सकता है ।

फिल्म का सेट भव्य है जैसा कि भंसाली की हर फिल्मों में होता आया है लेकिन अबकी बार उनका निर्देशन प्रभावहीन है । इमोशन बिल्कुल ख़त्म हो गया है । कलाकारों का अभिनय ही दर्शकों में रुचि पैदा कर सकता है मगर इसमें भी संदेह नज़र आता है । संगीत बेअसर है ।

फिल्म में राजपूतों की आन बान शान और वीरता का सटीक दर्शन है वहीं  मुग़ल खिलजी वंश का दोगलापन , अय्याशी , छलावा को दिखाकर भंसाली भारतवासियों से सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं । 

- संतोष साहू

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