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फिल्म समीक्षा - हिंदुत्व

बैनर - जयकारा फिल्म्स, प्रगुणभारत

कलाकार - आशीष शर्मा, सोनारिका भदौरिया, अंकित राज, गोविंद नामदेव, दीपिका चिखलिया, अनूप जलोटा व अन्य।

निर्देशक लेखक - करण राजदान

निर्माता - करण राजदान, सचिन चौधरी, कमलेश गढ़िया, सुभाष चंद, जतिन्द्र कुमार।

रेटिंग - 3 स्टार

वर्तमान समय में सोशल मीडिया पर हिन्दू मुस्लिम को लेकर जोरशोर से बयानबाजी चल रहा है। लगता है कि इसी मुद्दे को भुनाने के लिए व हिंदुत्व की परिभाषा समझाने के लिए करण राजदान ने इस फिल्म का निर्माण किया है। भारत एक सर्व धर्म समभाव वाला देश है। साथ ही वसुधैव कुटुम्बकम के अंतर्गत बाहर के लोगों का आतिथ्य सत्कार करना यहाँ की परंपरा रही है। इतिहास के पन्ने पलटते हैं तो पता चलता है कि इस देश ने न जाने कितने आक्रांताओं का आक्रमण झेला। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सबसे ज्यादा सनातन धर्म को क्षति पहुंचाई। हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने कई बार मोहम्मद गौरी को क्षमा कर दिया। हिन्दू की उदार प्रवृति ही उसे महान बनाती है। वहीं इस देश के मुस्लिमों ने भी देशप्रेम का परिचय दिया है। कहीं न कहीं इससे भी यह फिल्म प्रेरित है। 

फिल्म का नायक भरत शास्त्री (आशीष शर्मा) देहरादून के यूनिवर्सिटी का छात्र है। तो वहीं समीर सिद्दीकी (अंकित राज) छात्र संघ के चुनाव में अपनी जीत के लिए निश्चित है क्योंकि एक मुस्लिम संगठन उसके समर्थन में है। लेकिन वह सिर्फ एक मोहरा है यही सच्चाई है। यूनिवर्सिटी में कुछ छात्र सरकार द्वारा आतंकी घोषित अफज़ल गुरु के समर्थन में नारे लगाते हैं। तब भरत भी साथियों सहित कट्टर हिन्दू के रूप में उन्हें मुंह तोड़ जवाब देता है। भरत के हिंदुत्व रूपी क्रांतिकारी विचारों से महा हिन्दू परिषद के अध्यक्ष भालेराव (गोविंद नामदेव) प्रभावित हो जाते हैं और उन्हें छात्र संघ के चुनाव में समीर के विरुद्ध लड़ने के लिए कहते हैं। चूंकि भरत और समीर बचपन में दोस्त रहते हैं मगर जवानी के दहलीज पर कदम रखते ही समीर कुछ स्वार्थी मुल्लों के द्वारा गुमराह होकर देशद्रोही बयान देता है। इससे शहर का माहौल बिगड़ जाता है और साम्प्रदायिक दंगे भड़क जाते हैं। लेकिन अंत में भरत अपने भटके हुए मित्र को सही रास्ते पर ले आता है और इंसानियत धर्म को सबसे ऊपर साबित करता है।

हिंदुत्व फिल्म का क्लाइमेक्स शायद कट्टर हिन्दू मुस्लिम को पसंद नहीं आयेगा।

निर्देशक ने हिंदुत्व के माध्यम से मानवता को सर्वोपरि बताया है। हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की भावना पर जोर दिया है। 

कुछ सीन अविश्वसनीय लगता है जैसे कि समीर की सच्चाई जानने के लिए भरत उसकी प्रेमिका सपना गुप्ता को कश्मीर ले जाता है जहां समीर आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले षड्यंत्रकारी संगठनों के साथ मिलके देश को तबाह करने का योजना बना रहा है।

फिल्म में आशीष शर्मा ने बढ़िया काम किया है पर कहीं कहीं ओवरएक्टिंग की भी झलक है। सोनारिका भदौरिया की डायलॉग डिलीवरी कमजोर है। अंकित राज अपनी भूमिका में फिट बैठते हैं। गुरु मां की भूमिका में दीपिका चिखलिया से कुछ उम्मीद थी लेकिन वो बात नहीं दिखी। गोविंद नामदेव, अनूप जलोटा व अन्य का अभिनय साधारण ही है।

संगीत पक्ष की बात करें तो एक शीर्षक गीत ही असरदार है।

फिल्म की फोटोग्राफी अच्छी लगती है। जय श्री राम के नारे लगाने मात्र से फिल्म को देखने के लिए हिन्दू दर्शक उमड़ पड़े ऐसी भी बात नहीं। यह फिल्म मुस्लिम दर्शकों को सिनेमाघरों तक लाने में सफल नहीं हो पाएगी।

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