अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म मुक्काबाज़ का नायक सिर्फ रिंग पर ही नहीं लड़ा बल्कि सामाजिक बुराई का डटकर सामना किया । हमारे देश में जो राजनीती चलती है उसमें युवावर्ग की प्रतिभा सबसे अधिक प्रभावित होती है । प्रतिभावान खिलाड़ी को सही अवसर नहीं दिया जाता ।
फिल्म में उत्तरप्रदेश के बरेली शहर का बाहुबली नेता भगवान दास मिश्रा ( जिम्मी शेरगिल ) पूर्व बॉक्सिंग चैंपियन होता है और इस खेल पर अपना पूरा नियंत्रण रखता है । बॉक्सिंग टूर्नामेंट में भाग लेने से पहले वह नए खिलाड़ी से जमकर सेवा लेता है । शहर का जोशीला जवान श्रवण कुमार सिंह ( विनीत सिंह ) भी बॉक्सर है जो पढ़ाई छोड़कर खेल के माध्यम से नौकरी पाने की इच्छा रखता है । बढ़ती उम्र , बेरोजगारी और आर्थिक तंगी ने उसे चिड़चिड़ा बना दिया है । भगवान दास की नज़र में श्रवण बेस्ट बॉक्सर है मगर वह अपने सम्मान के खातिर श्रवण के खिलाफ हो जाता है और दूसरी तरफ श्रवण को उसकी गूंगी भतीजी से प्यार हो जाता है ।
भगवान की क्रूरता से पीड़ित श्रवण बनारस चला जाता है और बॉक्सिंग की ट्रेनिंग पूरी कर चैंपियन बनता है फिर उसे नौकरी भी मिलती है और मनचाही शादी भी हो जाती है । लेकिन भगवान उसे राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में हराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ता । विपरीत परिस्थिति में भी कोच के प्रोत्साहन से श्रवण अपना मनोबल बनाये रखता है ।
अंत में वह जीवन के जंग में विजयी तो होता है लेकिन रिंग में खुद को पराजित कर एक क्रूर बाहुबली नेता के सम्मान की ऐसी की तैसी कर देता है ।
फिल्म की पृष्ठभूमि यु पी है शायद इसीलिए निर्देशक ने राजनीती के साथ जातीय भेदभाव को भी दर्शाना उचित समझा ।
फिल्म में विनीत कुमार सिंह की स्फूर्ति ने उनके अभिनय को ऊंचाई प्रदान की है । जिम्मी शेरगिल ने सशक्त अभिनेता का परिचय दिया है और ज़ोया हुसैन भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही ।
अनुराग कश्यप आज के दौर के यथार्थवादी निर्देशक हैं उनकी रचनात्मकता पर संदेह करना निरर्थक है । हाँ उन्हें स्टार की जरूरत नहीं वे तो खुद स्टारमेकर हैं । अनुराग की फिल्म के संवाद सभ्य समाज को भले रास ना आये मगर वे सच का साथ नहीं छोड़ते ।
- संतोष साहू
मुक्काBAAZ पर संतोष जी का लेख बहुत रोचक है.
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