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पर्किंसन्‍स डिसीज (पीडी) को अक्‍सर उम्र बढ़ने का एक स्‍वाभाविक हिस्‍सा मान लिया जाता है और यह एल्‍झाइमर्स के बाद दूसरी सबसे आमतौर पर पाई जाने वाली न्‍यूरोडीजनरेटिव बीमारी है। पीडी से 60 साल से ज्‍यादा उम्र के लगभग 1% लोग प्रभावित होते हैं और शुरूआती अवस्‍थाओं में अक्‍सर इसका पता नहीं चल पता है। इस कारण मरीज को अनावश्‍यक रूप से परेशान होना पड़ता है। मुंबई सेंट्रल के वॉकहार्ट हॉस्पिटल में फंक्‍शनल न्‍यूरोसर्जन डॉ. मनीष बालदिया  बीमारी का जल्‍दी पता लगाकर दखल देने की महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकता पर रोशनी डाल रहे हैं।

स्‍कूल के एक सेवानिवृत्‍त प्रिंसिपल को 60 की उम्र के बाद से चुनौतियाँ होने लगीं। उनकी पर्किंसन्‍स डिसीज को गलत समझ लिया गया था। वह वर्षों तक शरीर की कंपकंपी, धीमी गतिशीलता और थकान का कारण उम्र बढ़ने को मानते रहे। उनका परिवार भी चिंति‍त था, लेकिन इन लक्षणों को उन्‍होंने भी उम्र बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्‍सा समझ लिया। इस गलतफहमी से उनके जीवन की गुणवत्‍ता कम होने लगी, उन्‍हें भावनात्‍मक तनाव हुआ और सामाजिक मेल-जोल बंद हो गया।

बदलाव तब आया जब एक रिश्‍तेदार, जो खुद मेडिकल पेशवर है, ने उन्‍हें विशेषीकृत उपचार लेने की सलाह दी। एक न्‍यूरोलॉजिस्‍ट ने पर्किंसन्‍स डिसीज की पुष्टि की, जिससे राहत के साथ घबराहट भी उन्‍हें हुई। सही समय पर दखल देकर उन्‍हें उन्‍नत उपचार प्रदान किये गये, जैसे कि डीप ब्रेन स्टिम्‍युलेशन (डीबीएस), दवाओं का समायोजन और पुनर्वास थेरैपी। यह उपचार डॉ.बालदिया की विशेषज्ञता में प्रदान किये गये।

बिजली की तरंगों के द्वारा मस्तिष्‍क की असामान्‍य गतिविधि को ठीक करने वाली आधुनिकतम विधि डीबीएस के बाद मरीज के मोटर फंक्‍शन में नाटकीय ढंग से सुधार हुआ। उनका कंपन कम हुआ, स्‍पीच थेरैपी से उनकी आवाज में ताकत लौट आई और बागबानी जैसी गतिविधियाँ भी उन्‍होंने दोबारा शुरू कर दीं। पहले उन्‍हें लगा था कि ऐसे काम वह अब कभी कर नहीं पाएंगे। 

आशा एवं जागरूकता का एक संदेश :- 
अब उनका जीवन काफी बेहतर हो गया है और वह पर्किंसन्‍स पर जागरूकता की हिमायत करते हैं। वह दूसरों से इस बीमारी के शुरूआत लक्षणों को समझने और सही समय पर चिकित्‍सा कराने का आग्रह करते हैं। वह उत्‍साह से बताते हैं, ‘’सबसे बड़ा सबक मैंने यह सीखा है कि अपने शरीर के संकेतों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। उम्र बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि आप चुपचाप कष्‍ट पाते रहें। पर्किंसन्‍स से जिन्‍दगी खत्‍म नहीं होती है, बल्कि सही मार्गदर्शन मिलने पर नई शुरूआत की जा सकती है।‘’

डॉ. मनीष बालदिया ने कहा, ‘’बीमारी का जल्‍दी पता लगाकर और उन्‍नत उपचारों से पर्किंसन्‍स के मरीजों के जीवन की गुणवत्‍ता को नाटकीय तरीके से सुधारा जा सकता है। हमारा लक्ष्‍य यह सुनिश्चित करना है कि जागरूकता की कमी के कारण किसी को भी वर्षों तक अनावश्‍यक रूप से कष्‍ट न पाना पड़े।‘’ उन्‍होंने आगे कहा, ‘’डीप ब्रेन स्टिम्‍युलेशन और निजीकृत इलाज जैसी उन्‍नतियों के साथ हम पर्किंसन्‍स के मरीजों को उम्‍मीद और जीवन की नई गुणवत्‍ता दे सकते हैं।‘’

वॉकहार्ट हॉस्पिटल मुंबई सेंट्रल न्‍यूरोलॉजीकल उन्‍नतियों में आगे है और पर्किंसन्‍स के मरीजों के लिये अत्‍याधुनिक उपचारों तथा समानुभूति वाली देखभाल की पेशकश कर रहा है। जागरूकता बढ़ने के साथ ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग अपनी जिन्‍दगी को दोबारा ठीक कर सकते हैं।

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