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टाइप सी साँसनली और ग्रासनली के नालव्रण से ग्रसित शिशु की बचाई जान 

मुंबई। जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, मुंबई ने सर्जरी तथा गहन देखभाल प्रबंधन की ज़रूरत वाले एक विरल तथा जटिल मामले में, प्रसव के समय कम भार (1.3 किग्रा) तथा टाइप सी साँसनली और ग्रासनली के नालव्रण (ट्रेकिओ-ओएसोफैगल फिस्टुला) (टीईएफ) से ग्रसित, 30 सप्ताह आयु वाले समय से पूर्व जन्मे शिशु का सफल उपचार किया। साँसनली और ग्रासनली के बीच असामान्य जुड़ाव के कारण यह यह जन्मजात समस्या बनती है, जिसमें अत्यधिक लार निकलती है तथा दम घुटने व फेफड़ों में संक्रमण का जोखिम अधिक रहता है। जसलोक हॉस्पिटल की चिकित्सीय टीम ने सिंगल स्टेज करेक्टिव सर्जरी करने के पश्चात ओसोफेगल डाइलेशन किया, जो इस तरह के नाजुक मामले में एक अद्वितीय उपलब्धि है। कई प्रकार के विशेषज्ञों वाली टीम के तालमेल से संभव हुए इस प्रयास के पश्चात,शिशु की हालत अब स्थिर है, उसे केवल स्तनपान कराया जाता है, उसका भार 1.8 किग्रा है तथा शीघ्र ही उसे हॉस्पिटल से घर भेज दिया जाएगा।

वापी, गुजरात में जन्मे इस शिशु में इस विकार के कारण प्राणघातक जटिलताएं थीं, तथा बेहतर उपचार विकल्पों हेतु उसके अभिभावकों ने डॉ. फजल नबी (डॉयरेक्टर, पीडियाट्रिक्स, जसलोक हॉस्पिटल) से संपर्क किया। मामले की जटिलता को देखते हुए शिशु को हॉस्पिटल लाने के लिए डॉ. फजल नबी खुद वापी तक गए ताकि लाए जाने के दौरान शिशु की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके तथा उनकी विशेषज्ञ निगरानी में शिशु को आर्टिफिशियल वेंटिलेशन के साथ जसलोक हॉस्पिटल लाया गया। शिशु को तत्काल ही पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) में भर्ती कर दिया गया, जहाँ डॉ. फज़लनबी ने शिशु के उपचार का दायित्व संभाला। लाए जाने पर शिशु को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था, इनोट्रोप्स के साथ हीमोडायनेमिक स्टेबिलाइजेशन दिया जा रहा था, तथा इंटेंसिव सेप्सिस प्रबंधन शुरू किया गया।
उसके पश्चात, जसलोक हॉस्पिटल की प्रख्यात पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. नरगिस बारसीवाला से परामर्श किया गया, जिन्होंने बताया कि शिशु की हालत स्थिर होने के पश्चात सिंगल-स्टेज सर्जरी सबसे उपयुक्त रहेगी। तीसरे दिन, डॉ.बारसीवाला ने सिंगल-स्टेज करेक्टिव सर्जरी की, जिसमें नालव्रण को बाँध दिया गया तथा ग्रासनली को एक से दूसरे सिरे तक शाखामिलन किया गया, जिसके पश्चात शिशु को इंटेंसिव केयर यूनिट में पहुँचा दिया गया। सर्जरी के बाद की अवधि में, टीम को आंतों की गतिशीलता से संबंधित एक और समस्या का सामना करना पड़ा। समय-पूर्व जन्म तथा कम भार के कारण आंत्र संचलन ठीक नहीं था। शिशु को आंशिक टीपीएन के साथ (एनजी) नासोगैस्ट्रिक ट्यूब फीडिंग पर रखा गया था। निगलने में भी शिशु को कठिनाई होती थी। लगभग एक माह तक नासोगैस्ट्रिक ट्यूब से आहार दिया गया तथा उसके पश्चात फीडिंग गैस्ट्रोस्टोमी करने का निर्णय लिया गया तथा एनजी नली हटा दी गई।
हालांकि, एक माह पश्चात भी, निगलने में शिशु को कठिनाई होती थी। यह समस्या दूर करने हेतु, गैस्ट्रोस्टोमी की गई। सबसे छोटे उपलब्ध डायलेटर के प्रयोग द्वारा टीम ने ओसोफेगल डाइलेशन करने का फैसला किया, जिसमें काफी जोखिम था। डॉ. पंकज धवन (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी कंसल्टेंट, जसलोक हॉस्पिटल) ने डॉ. फजल तथा डॉ. बारसीवाला की अगुवाई में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट और एनेस्थीसिया टीम से पूरे सहयोग के साथ यह नाजुक प्रक्रिया पूरी की। उसके बाद, शिशु ने स्वयं ही निगलना प्रारंभ कर दिया, जिसके बाद एनजी ट्यूब हटा दी गई।
डॉ. फजल नबी (डॉयरेक्टर, पीडियाट्रिक्स, जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर) ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि शिशु को लाए जाने के समय वह जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहा था - छोटा और नाजुक जिसे तुरंत उपचार की आवश्यकता थी। लाए जाने के बाद उसे स्टेब्लाइज करने से लेकर सर्जरी के बाद होने वाली जटिलताओं का समाधान करने तक, हर स्टेप को सही समय पर, तथा अनुकूलित किया जाना था। ओसोफैगल डाइलेशन खासा चुनौतीपूर्ण था, लेकिन टीम ने सही तालमेल बनाकर काम किया। अब जबकि वह स्वयं अपना आहार ले पा रहा है, तथा अपने घर जाने के लिए तैयार है, तो उसे देखकर हमें हमारे कार्य की सार्थकता समझ में आती है।
डॉ. नरगिस बारसीवाला (कंसल्टैंट- पीडियाट्रिक सर्जरी, जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर) ने अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि एक किलो से थोड़ा सा अधिक भार वाले समय-पूर्व प्रसव वाले शिशु का ऑपरेशन कभी भी आसान नहीं हो सकता। ऊतक बहुत ही नाजुक होते हैं तथा गलती की गुंजाइश नहीं के बराबर रहती है। लेकिन मामले की हालत को देखते हुए, इंतजार भी नहीं किया जा सकता था। जोखिमों तथा दीर्घकालिक लाभों पर विचार करते हुए हमने सिंगल-स्‍टेज करेक्टिव सर्जरी करने का फैसला किया। सटीक सर्जिकल विशेषज्ञता, डॉ. रजनीप्रजीश द्वारा विशेषज्ञ एनेस्थीसिया सपोर्ट, तथा डॉ. कोटावाला तथा सर्जिकल रेजीडेंट्स से मिले पूरे सहयोग के कारण सफल परिणाम साकार किया जा सका।
नवजात शिशु की माता श्रीमती तृप्ति ने आभार प्रकट करते हुए कहा, “मेरे शिशु का जन्म मेरे विवाह के 8 साल पश्चात आईवीएफ सपोर्ट से हो सका, जो मेरे लिए अनमोल है। समय-पूर्व प्रसव तथा शिशु की नाजुक हालत ने मुझे काफी चिंतित किया हुआ था। हालाँकि, जसलोक हॉस्पिटल के डॉक्टरों तथा कर्मचारियों ने जिस समर्पण भावना के साथ उपचार प्रदान किया, उससे मेरे मन में आशा की किरण प्रकट हुई। 

समय-पूर्व जन्मे शिशु की घर पर देखभाल के लिए परिवार को अब व्यापक मार्गदर्शन दिया जा रहा है, जिसमें सुरक्षित आहार विधियां, दवाओं का समय तथा महत्वपूर्ण चेतावनी संकेत आदि विषय सम्मिलित हैं।

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