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  मनिषा वायकर — एक अपराजित संघर्ष की कहानी"

 — विशेष राजनैतिक विश्लेषण | मिशन पत्रकारिता

 मुंबई | 16 जून 2025

    राजनीति में हार कभी अंतिम नहीं होती... और जीत हमेशा आंकड़ों से नहीं मापी जाती। नवंबर 2024 के जोगेश्वरी विधानसभा चुनाव में मात्र 1541 वोटों से पराजित हुईं श्रीमती मनिषा वायकर की कहानी ऐसी ही एक अद्वितीय और दिल को छू लेने वाली दास्तान है — एक शिक्षिका की, एक पत्नी की, एक मां की, और आज के समय में जनता के दिलों पर राज करने वाली एक नेता की।

एक अनचाही लेकिन नियति की चुनी हुई शुरुआत - मनिषा वायकर का राजनीति से कोई नाता नहीं था। वे एक शिक्षिका थीं — अनुशासित, मेहनती और समाज के लिए कार्य करने की भावना रखने वाली।उनके पति, रविंद्र वायकर, वर्षों तक विधानसभा में एक मजबूत चेहरा रहे। हर भाषण में वे दोहराते — "मेरे परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं आएगा।" और मनिषा जी ने भी यही मर्यादा स्वीकार की थी। लेकिन राजनीति से जितनी दूरी वे बनाए रखती थीं, उतनी ही नियति उन्हें पास लाती रही।

 

जब सियासत में घर की महिला ही ढाल बनी : वर्ष 2022-23 में जब ईडी की कार्रवाइयों और राजनीतिक हमलों ने वायकर परिवार को हिला कर रख दिया, तब हालात ऐसे बने कि मनिषा वायकर को ही परिवार और क्षेत्र की साख बचाने के लिए आगे आना पड़ा। पिछले साम मई 2024 में संपन्न लोकसभा चुनाव में, जब रविंद्र वायकर को मैदान में उतरना पड़ा, तब उनकी जीत की असली रणनीतिकार मनिषा वायकर ही रहीं। चुनाव से लेकर संगठन, कार्यकर्ता से लेकर मतदाता तक — हर स्तर पर उन्होंने नेतृत्व किया। जो महिला कभी राजनीति से दूर रहना चाहती थी, आज वही महिला अपने पति की 451095 वोटों से संसदीय विजय में सबसे मजबूत स्तंभ बन गई।

 उसके बाद शिवसेना (शिंदे गुट) की ओर से जब उन्हें टिकट मिला, तो वह न सिर्फ़ एक उम्मीदवारी थी, वह प्रतिकात्मक प्रतिकार था — उस सोच के विरुद्ध, जो राजनीति को सिर्फ़ पुरुषों की बपौती समझती है। और इसी चुनावी समर में, 21 पुरुष उम्मीदवारों के सामने खड़ी रहीं अकेली महिला — मनिषा वायकर। लेकिन ये संघर्ष सिर्फ़ एक सीट का नहीं था, यह था राजनीतिक षड्यंत्रों के विरुद्ध एक स्त्री की अस्मिता का युद्ध।

 


जनता ने किसे अपनाया? : मनिषा वायकर का प्रचार दिखावे से दूर, सच्चाई और आत्मीयता से भरा था। उन्होंने हर घर का दरवाजा खटखटाया, हर हाथ थामा और हर आंसू समझा। और नतीजा? 75,503 वोट। कहते हैं कि यह केवल एक चुनाव नहीं था — यह था जनता बनाम पूरा राजनैतिक तंत्र। जब चुनाव के नतीजे आए और अनंत उर्फ़ बाला नर (उद्धव गुट) को जीत मिली, तो हर कोई समझ गया कि यह जीत दरअसल एक महिला को हराने की रणनीति का परिणाम थी। राजनीतिक दलों, अपक्षों, जातीय समीकरणों और धनबल ने मिलकर सिर्फ़ एक ही लक्ष्य बनाया — मनिषा वायकर को रोकना। फिर भी वह मात्र 1541 मतों से पराजित हुईं — और यह हार नहीं, उनकी जनस्वीकृति का प्रमाण बन गई।

 'वायकर की पत्नी' से 'जोगेश्वरी की बेटी' तक का सफर :  कभी लोग रविंद्र वायकर के भाषण सुनने आते थे, आज लोग मनिषा वायकर की बातों को आत्मसात करने आते हैं। वह लोगों की भावनाओं को समझती हैं, उनके दर्द को महसूस करती हैं और उनके लिए खड़ी रहती हैं। आज वह किसी की पत्नी नहीं — ‘मनिषाताई’ बन चुकी हैं। वह जो कभी एक पुरुष नेता श्री रविंद्र वायकर के दिल पर राज करती थीं, अब जनता के दिलों की रानी बन चुकी हैं।

 

एक अपराजित ‘मनिषा’ — प्रेरणा हर महिला के लिए : इस विधानसभा चुनाव में भले ही आंकड़े कुछ और कहते हों, लेकिन सच तो ये है कि मनिषा वायकर हारकर भी लाखों दिलों की विजेता बन गईं। उनका संघर्ष हर उस महिला के लिए प्रेरणा है जो अपने घर, समाज और पहचान के बीच संतुलन साध रही है। यह चुनाव नहीं था — यह एक विचारधारा की पराजय और एक स्त्री की गरिमा की जीत थी। जब पूरा सिस्टम किसी एक को हराने के लिए एकजुट हो जाए — और वह व्यक्ति सिर्फ 1541 मतों से हारे — तो यह उसकी हार नहीं, लोकतंत्र की गौरवशाली विजय होती है।  "मनिषा वायकर अब सिर्फ एक नाम नहीं रहीं... वो एक आवाज़ हैं — जोगेश्वरी की, महिलाओं की, और एक नई राजनीति की!"

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