विशेष
संवाददाता / मुंबई
एक के बाद एक मुंबई के कई पुलिस थानों
में दर्ज शिकायतों के बावजूद नवी मुंबई के मोरा सागरी पुलिस थाने के वरिष्ठ पुलिस
निरिक्षक सूर्यकांत दादाराव
कांबले पर कोई ठोस कार्रवाई न हो पाना अब
न्यायपालिका की नजरों से बच नहीं पाया। मुंबई उच्च न्यायालय ने अब इस मामले में
सीधा दखल देते हुए सूर्यकांत कांबले को उत्तरदायी ठहराते
हुए उसे
मामले में छठवें प्रतिवादी के रूप में शामिल करने की अनुमति दी है।
दिनांक 4
जुलाई 2025
को न्यायमूर्ति रवींद्र वी. घुगे और न्यायमूर्ति एम.एम.
साठये की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए यह ऐतिहासिक आदेश जारी किया। मिशन
पत्रकारिता नैशल लिगल हेल्प कमेटी के मुख्य सचिव एडवोकेट नितीन शिवराम साटपुते द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह
फैसला दिया गया, जिसमें
विशेष रूप से सूर्यकांत कांबले के विरुद्ध की गई शिकायतों को प्रमुखता से प्रस्तुत
किया गया था।
याचिका में बताया गया कि मुंबई
के कई पुलिस थानों में सूर्यकांत कांबले के विरुद्ध गंभीर शिकायतें दर्ज हैं,
लेकिन प्रभावशाली रसूख और तंत्र के
संरक्षण के चलते अभी तक कोई निर्णायक कार्यवाही नहीं हुई। यह कानून व्यवस्था के
लिए एक गंभीर चुनौती है, जिस
पर अब न्यायालय ने सख्ती दिखाई है।
उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य
सरकार और संबंधित पुलिस विभाग को स्पष्ट आदेश दिया है कि वे कांबले का पूरा
सेवा रिकॉर्ड, विशेषतः
उस पर दर्ज मामलों का विवरण एक शपथपत्र के रूप में प्रस्तुत करें। यह शपथपत्र
संबंधित पुलिस ज़ोन के उप पुलिस आयुक्त या उससे उच्च अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किया
जाना अनिवार्य किया गया है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि यह विवरण 12 अगस्त 2025 को अगली सुनवाई से एक सप्ताह पहले तक जमा होना चाहिए।
यह आदेश केवल एक प्रक्रिया नहीं,
बल्कि उन सभी पीड़ितों के लिए आशा की
किरण है, जिनकी शिकायतें वर्षों
से दबाई जा रही थीं। अब जबकि मामला न्यायिक निगरानी में आ चुका है, यह स्पष्ट संकेत है कि सिस्टम
से बच निकलने की चालाकियों का खेल अब खत्म होने वाला है।
सवाल ये नहीं कि सूर्यकांत कांबले ने
क्या किया — सवाल ये है कि अब तक उसे क्यों बख्शा गया?
मुंबई हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल एक
व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि उन सभी ताकतवर चेहरों के लिए
चेतावनी है, जो कानून को मुठ्ठी
में समझते हैं।
जाग चुका है न्याय, अब नहीं रुकेगा इंसाफ!
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