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बीएमसी के आंकड़ों के मुताबिक 2021 में करीब 60,000 टीबी मामलों की पहचान हुई, मरीजों को उच्च मृत्यु दर का खतरा

मुंबई : महाराष्ट्र राज्य में टीबी के विनाशकारी स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने की दिशा में की जा रही कोशिशों के तहत भारत सरकार के विज्ञान और तकनीकी विभाग, मशहूर स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञ डॉ. वेलुमनी और जीई हैल्थकेयर व इंटेल इंडिया स्टार्टअप प्रोग्राम जैसे निजी कंपनियों द्वारा समर्थित मुंबई स्थित स्वास्थ्य-तकनीक स्टार्टअप हेस्टैकएनालिटिक्स ने भारत में टीबी महामारी को समाप्त करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए प्रमुख पल्मोनोलॉजिस्ट के साथ एक पैनल चर्चा का आयोजन किया।

भारत में टीबी या ट्यूबरकुलोसिस के निदान और उपचार के लिए होल जीनोम सीक्वेंसिंग (डब्ल्यूजीएस) क्रांतिकारी समाधान के रूप में कैसे उभर सकता है, इस बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए एक मजबूत पहल के साथ चर्चा को संबोधित करते हुए हेस्टैक एनालिटिक्स, केंद्रीय समिति के सदस्य, भारत के टीबी एसोसिएशन और मुंबई के राष्ट्रीय टीबी उन्मूमलन कार्यक्रम के नेशनल ट्रेनर डॉ. निखिल सारंगधर, नवी मुंबई स्थित टरना स्पेशएलिटी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के असिस्टेंट प्रोफेसर और नवी मुंबई के आशीर्वाद हॉस्टिपटल के कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अंचित भटनागर, मुंबई के एफसीसीपी (यूएसए), कंस्लटेंट चेस्ट फिजिशियन और इंटेंसिविस्ट, डीएनबी (चेस्ट) डॉ. पंकज बांग, और मुंबई स्थित हेस्टैक एनालिटिक्स के सह संस्थापक और सीईओ डॉ. अनिर्वान चटर्जी को एक मंच पर साथ लेकर आया। इस चर्चा का उद्देश्य इस मूक हत्यारे (टीबी बीमारी) के प्रभाव को कम करने के दौरान सामने आने वाली पूर्वाग्रहों, चुनौतियों और संभावित समाधानों पर प्रकाश डालना था।

 इंडिया टीबी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, 2020 के आंकड़ों के मुताबिक 1.3 लाख व्यक्तियों (जो कोविड से संक्रमित थे) ने टीबी की जांच कराई और कम से कम 2,163 लोगों में इस बीमारी का पता चला। कुल मिलाकर, पिछले दो वर्षों में टीबी से 14,438 मौतें हुई हैं। 2021 में टीबी से लगभग 7,453 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 2020 में 6,985 लोगों को इस बीमारी की वजह से जिंदगी गंवानी पड़ी।

2020 में टीबी के मामलों की पहचान में 28 प्रतिशत की गिरावट आई और 2019 की तुलना में केवल 43,464 लोगों की पहचान की गई थी, जबकि मुंबई में कुल 60,597 टीबी रोगियों का पता चला था।

इस चर्चा के दौरान डॉ. निखिल सारंगधर महामारी के बाद के समय में टीबी या ट्यूबरकुलोसिस के वर्तमान परिदृश्य और इसके उन्मूलन के लक्ष्य के बारे में सभा को ताजा जानकारी से अवगत कराया। उन्होंने कहा, “2019 के बाद से, मुंबई में 15-36 वर्ष की आयु के लोगों में टीबी निदान में वृद्धि देखी गई है। हालांकि, कोविड और महामारी और श्वसन संबंधी लक्षणों के प्रति पूर्वाग्रहों की वजह से लोगों में स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से संपर्क किए जाने के मामले में कमी देखी गई। इसके अलावा, टीबी के सभी रोगियों में से आधे से अधिक अपने प्रारंभिक निदान और उपचार के लिए निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से संपर्क किया। यह संभव है कि आर्थिक मुश्किलों, कोविड पर स्वास्थ्य सेवाओं का ध्यान केंद्रित किया जाना और अनिवार्य आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के बिना संसाधनों तक पहुंच में मुश्किल की वजह से स्वास्थ्य संबंधी सलाह लेने में देरी हुई और इसकी वजह से इलाज शुरू करने में विलंब हुआ, जिसकी वजह से मौतें हुईं। फिर भी, महाराष्ट्र में टीबी को कम करने के लिए कई पहल की गई हैं और हाल ही में 1,000 से अधिक भारतीयों ने करीब 7,000 से अधिक टीबी मरीजों को गोद लिया है ताकि उनके बेहतर उपचार के लिए व्यावसायिक, नैदानिक और पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जा सके। देश भर में सबसे अधिक गोद लेने के मामलों के साथ महाराष्ट्र इस सूची में सबसे ऊपर है।”

डॉ. पंकज बांग ने कहा, "हालांकि, बीमारी के बोझ में विविधता और भिन्नता को देखते हुए, गैर-पारंपरिक हितधारकों जैसे निगमों, नागरिक समाज, युवा लोगों, समुदाय-आधारित संगठनों (सीबीओ) और समुदाय के सदस्यों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। ये सभी टीबी के खिलाफ जंग जीतने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। महाराष्ट्र में टीबी की निगरानी, निदान, उपचार और निगरानी के लिए तकनीकी का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है, और ऐसा एक निदान जो हम वर्तमान में इस्तेमाल कर रहे हैं वह हेस्टैक एनालिटिक्स का संपूर्ण जीनोम परीक्षण है, जो हमें तेज नतीजे देते हुए यह सुनिश्चित करता है कि रोगियों को जल्द से जल्द सही दवाएं मिलें। अंतत: भारत से टीबी को खत्म करने के मिशन की दिशा में सभी के लिए मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है।

सरकार और संबंधित समुदाय के समर्थन से जीनोम सिक्वेंसिंग जैसी अगली पीढ़ी की मेडटेक की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने में मदद करने के लिए योगदान के बारे में जिक्र करते हुए हेस्टैक एनालिटिक्स के सीईऔ और सह संस्थापक डॉ. अनिर्वाण चटर्जी ने कहा, “हेस्टैक एनालिटिक्स में हमारा लक्ष्य उन तकनीकों को नवोन्मेषी और सक्षम बनाना है जो मौजूदा नैदानिक पारिस्थितिकी तंत्र में  मौजूद खाई और चुनौतियों को पाटती हैं। संपूर्ण जीनोम सीक्वेसिंग टीबी का पता लगा सकता है और बहुत तेज दर पर डीएसटी प्रोफाइल के बारे में अनुमान लगा सकता है, जो टीबी के लिए समय-समय पर निदान और उचित उपचार को कम करने की भविष्य की क्षमता को प्रदर्शित करता है। मुंबई जैसे घनी आबादी वाले महानगर में मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, बहु-दवा प्रतिरोधी या मल्टी ड्रग्स रेसिस्टेंट टीबी की दर खतरनाक रूप से अधिक है। ये आंकड़े आंशिक रूप से भीड़-भाड़ वाली रहने की स्थिति से प्रेरित हैं, लेकिन आंशिक रूप से इसलिए भी, क्योंकि अब तक, कई स्थानीय लोगों को उपचार के साथ-साथ परीक्षणों की संख्या के बारे में पता नहीं था। यह महत्वपूर्ण है कि अधिक से अधिक लोगों को उनके स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था पर टीबी के विनाशकारी प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए। बुनियाद से शुरू करना जरूरी है, जिसमें टीबी के लक्षणों वाले लोगों की पहचान करना और सकारात्मक रोगी परिणामों के लिए देखभाल निरंतरता में समर्थन करना शामिल है।

हेस्टैक एनालिटिक्स का ओमेगा टीबी, टीबी रोगियों में दवा प्रतिरोध की तेजी से पहचान के लिए नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग (एनजीएस) प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है और टीबी जांच के पूरे जीनोम सीक्वेंस की प्रक्रिया को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जून 2022 में बीआईआरएसी के बायोटेक स्टार्टअप एक्सपो 2022 में एक अभिनव समाधान के रूप में मान्यता दी गई थी। ओमेगा टीबी परीक्षण न केवल शामिल टीबी प्रजातियों की पहचान करता है बल्कि पहले परीक्षण में यह एंटी-टीबी दवा संवेदनशीलता के प्रदर्शन के समय को हफ्तों से घटाकर केवल सात से 10 दिनों तक करने में मदद करता है, जिससे प्रमाण-आधारित उपचार शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से समय की बचत होती है औऱ साथ ही टीबी कल्चर आधारित जांच में मदद मिलती है। यह टीबी दवा प्रतिरोध के लिए जिम्मेदार किसी भी नए उत्परिवर्तन या म्यूटेशन की पहचान करने में भी मदद करता है जो इसका एक अतिरिक्त फायदा है।

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