एक ज़माने में मराठी भाषियों को उनका अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ने वाले राजनेता बाल ठाकरे का जीवन चित्रण इससे बढ़िया और नहीं हो सकता ।
फ़िल्म की स्टोरी टेलिंग , स्क्रीनप्ले के साथ साथ उम्दा तकनीक का प्रयोग बेहतरीन नज़र आता है मगर ठाकरे से जुड़े कुछ खास पहलू सवाल खड़े कर जाते हैं । लेखक निर्माता संजय राउत ने अपने आदर्श को पर्दे पर हीरो की तरह ही पेश किया है । कोई और फिल्मकार साहेब की जीवन लीला पर फ़िल्म बनाता तो बात कुछ और हो सकती थी ।
मगर कुछ भी हो बाल ठाकरे ने मुम्बई की तस्वीर बदल दी थी मराठियों में नई शक्ति का संचार कर लोकतांत्रिक देश में स्वयं एक राजा की ज़िंदगी जीये थे ।
उनके समर्थक उन्हें महाराष्ट्र का मसीहा मानते रहेंगे ।
ठाकरे की भूमिका को साकार करने के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मेहनत साफ झलकती है । मीना ताई के रूप में अमृता राव का काम प्रसंशनीय है ।
फ़िल्म में संगीत का सूनापन है । जरूरत के हिसाब से प्रमोशनल सांग ठीक ठाक है ।
ठाकरे फ़िल्म देखने का विचार देश के हर नागरिक के मन में आ सकता है क्योंकि यह एक हिंदूवादी राजनीतिक संगठन शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की बायोपिक है ।
वायकॉम और कार्निवल की प्रस्तुति निर्देशक अभिजीत पानसे ने फ़िल्म में ठाकरे के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र बड़े ही प्रभावी ढंग से किया है । एक अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के बाद स्वतंत्र रूप से पत्रकार फिर प्रखर विचारधारा के राजनेता ठाकरे की ओजपूर्ण जीवन यात्रा का वर्णन इस फ़िल्म में देखने को मिलता है ।
- संतोष साहू
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