पटना। दुनिया के सबसे बेहतरीन और मशहूर लोग वो होते है जिनकी अपनी एक अदा होती है, वो अदा जो किसी की नक़ल करने से नही आती, वो अदा जो उनके साथ जन्म लेती है!! अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय और राजकीय सम्मान से अंलकृत डा. नम्रता आनंद की शख्सियत की भी कुछ ऐसी ही है। डा. नम्रता आनंद की ज़िन्दगी संघर्ष, चुनौतियों और कामयाबी का एक ऐसा सफ़रनामा है, जो अदभ्य साहस का इतिहास बयां करता है। उन्होंने अपने अब तक के अपने करियर के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और हर मोर्चे पर कामयाबी का परचम लहराया।
राजधानी पटना के मध्य विद्यालय सिपारा में शिक्षिका के रूप में कार्यरत डा. नम्रता आनंद का रूझान बचपन के दिनों से समाजसेवा की ओर था। जब वह महज 13 साल की थी तब उन्होंने अपने मुहल्ला में स्लम के गरीब बच्चों को नि.शुल्क शिक्षा देने का काम शुरू किया। अपने पाकेटमनी से वह उन स्लम के बच्चों के लिए कॉपी, किताब, पेंसिल और चॉकलेट्स लेकर जाती थी और पढ़ाती थी। उन्हीं दिनों डा. नम्रता आनंद ने सामाजिक संगठन दीदीजी फाउंडेशन की नींव रखी, जिसके बैनर तले वह शिक्षा, महिला सशक्तीकरण से जुडे काम करने लगी। वर्ष 2004 में राष्ट्रीय यूथ अवार्ड और वर्ष 2019 में राजकीय शिक्षक सम्मान से अलंकृत डा. नम्रता आनंद पर्यावरण संरक्षण की मुहिम से भी जुड़ी हुयी है। सामाजिक संगठन रोटरी क्लब में भी नम्रता आनंद सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं।
वर्ष 2021 में डा. नम्रता आनंद अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ संगठन ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) से जुड़ गयी। काम के प्रति निष्ठा और समर्पण को देखते हुये उन्हें जीकेसी बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। डा. नम्रता आनंद जीकेसी ग्रो ग्रीन की बांड एम्बेसडर भी है। बक्सवाहा के जंगल को बचाने के लिए डा. नम्रता आनंद सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। उनका कहना है कि जीवन के लिए हीरे से ज्यादा कीमती हरियाली होती है। इसलिए हरियाली की कीमत पर हमें हीरे नहीं चाहिए।
वर्ष 2021 में डा. नम्रता आनंद ने कुरथौल के फुलझड़ी गार्डेन में संस्कारशाला की स्थापना की। संस्कारशाला के माध्यम से गरीब और स्लम एरिया के बच्चों का नि.शुल्क शिक्षा, संगीत, सिलाई-बुनाई और डांस का प्रशिक्षण दिया जाता है। डा. नम्रता आनंद ने बताया कि समाजसेवी मिथिलेश सिंह और चुन्नू सिंह ने उन्हें नि:शुल्क संस्कारशाला की व्यवस्था की है जिसके लिये वह उनका आभार प्रकट करती हैं। असहाय वृद्धों के लिए नम्रता आनंद एक वृद्धाश्रम शुरु कर रही हैं।
डा: नम्रता आनंद ने बताया कि दीदीजी फाउंडेशन अभी तक कोई भी सरकारी सहायता नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि सरकारी सहायता के बिना मैं अपना काम नहीं रोक सकती। समाज सेवा के लिये कोई प्लनिंग नहीं करती। मेरी कोशिश होती है किसी की जरूरत पर मै उपलब्ध रहूं। मैं यही करती हूं और समाज सेवा होती चली जाती है।
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