0

कर्म छिपाये न छिपे

यदि व्यक्ति छिपकर  , अकेले में बुरे कर्म करता है और सोचता है कि उसे कोई नही देख रहा  , तो यह उसका भ्रम है । उन कर्मों की रिकार्डिंग संस्कार रूप में उसकी आत्मा में स्वतः होती जाती है । इस प्रकार वह स्वयं कर्ता और स्वयं ही अपनी करनी का गवाह बन जाता है । ये संस्कार ही उसके आगे के जीवन में उसकी उन्नति वा अवनति  , लाभ वा हानि  , प्रेम वा नफरत आदि को आकर्षित करते है । भगवान से भी कोई कुछ छिपा नही सकता । कर्मों के दो निरीक्षक सदा हमारे साथ है -- एक मन स्वयं  और दूसरा परमात्मा , इसलिए कभी भी बुरा कर्म ना करें ।

जब हम कोई कर्म करते है तो उसके भी दो पहलू है -- एक है प्रत्यक्ष पहलू और दूसरा है उस कर्म के समय की मन की भावना  , जो अप्रत्यक्ष होती है । मान लिजिए  , हमने किसी व्यक्ति को किमती खिलौना दिया । खिलौना प्रत्यक्ष है परन्तु खिलौना देते समय मन की भावना कैसी थी ? अहंकार की थी  , दया की थी  , दिखावे की थी  , मान-इज्जत की थी या नेकी कर दरिया में डाल -- इस प्रकार की थी ? खिलौना तो नश्वर है लेकिन उसको आधार बनाकर हमारी भावनाएँ निर्मित हुई वह सदा हमारे साथ रहेगी । एक ओर ईश्वर के प्रति श्रध्दा रहे और दूसरी ओर ईश्वर के बच्चों के प्रति गलत भाव रखें  , किसी को कटु वचन कहे  , किसी का हक मारकर स्वयं को मोटा बनाए  , ऐसा व्यक्ति कष्ट पायेगा ही । ईश्वरीय शक्ति उस व्यक्ति की कोई सहायता नही कर सकती । इसलिए अपने कर्मों के निर्णायक स्वतः बनो । कर्म फल से पहले कर्म रूपी बीज पर ध्यान दो ।

Post a Comment

 
Top