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मुम्बई। भारतीय अग्निशिखा मंच ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में महिलाओं के रचनात्मक कार्यक्रम के साथ सम्मान समारोह का आयोजन किया और महिलाओं के साथ साथ पुरुषों को भी सम्मानित किया। मंच की अध्यक्षा अलका पांडे ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस बार हम ऑफलाइन कार्यक्रम नहीं ले पाए क्योंकि मेरे पति पांडे जी का स्वर्गवास हुए अभी एक साल पूरा नहीं हुआ है।

इसलिए यह कार्यक्रम ऑनलाइन ही रखा गया जिसमें 45 महिलाओं और पुरुषों ने भाग लिया।

इस कार्यक्रम के समारोह अध्यक्ष राम राय, मुख्य अतिथि आरती आनंद, विशेष अतिथि मंजू गुप्ता, संतोष साहू, जनार्दन सिंह, पन्ना लाल शर्मा, आशा जाकड़, शिवपूजन पांडे आदि अतिथियों ने मंच की गरिमा बढ़ाई। कार्यक्रम का संचालन अलका पांडे, सुरेंद्र हरडे और शोभा रानी तिवारी ने किया। सभी रचनाकारों की रचनाएं काफी अच्छी रही एक से बढ़कर एक रचनाओं की प्रस्तुति दी गई।

महिला दिवस के इस अवसर पर अलका पांडे ने कहा कि महिलाएं अपने अधिकार तो जानने हैं और वह आज बखूबी उनका इस्तेमाल कर रही हैं। परंतु मैं कहना चाहूंगी कि महिलाएं अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना करते हुए उन्हें सही दिशा में इस्तेमाल करें, समाज को एक नई दिशा दें, एक मिसाल कायम करें ना कि घर और बाहर लोगों को परेशानी में डालें या विघटन का काम करें हमें हमारे अधिकारों का कभी भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हम पुरुषों की बराबरी जरूर करें उनके गुणों की उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए ना कि हम उनकी बुराइयों को अपनाएं। हमें उनकी बुराइयां नहीं अपनाना है। हम उनकी तरह नहीं बन सकते हम महिलाएं हैं, हममें संवेदना है, ममता है। हमें अपने गुणों का और विकास करना है और समाज को एक नई दिशा देना है। ऑनलाइन उपस्थित सभी लोगों का आभार निर्जा ठाकुर ने व्यक्त किया। 

प्रस्तुत है रचनाकारों की चंद लाइनें

स्त्री :

स्त्री कैद से मुक्ति असंभव हैं। 

जन्म से हथकड़ी लगा दी जाती है 

उठने, बैठने, पहने, ओढ़ने, खाने, पीने  यहाँ तक हंसने और बोलने पर भी पहरे बैठा दिये जाते हैं।

दुनिया की समस्त पाबंदियाँ केवल स्त्री पर आकर दम लेती है …

यहाँ तक कि चरित्र के समस्त आयाम

केवल स्त्री के लिए ही परिभाषित हैं... 

पुरुष मुक्त है हर बंदिशों से 

चरित्र की परिभाषा सिर्फ स्त्री को समझना होगा,

कुँवारी तो कुँवारी ब्याहता भी जकड़ी हैं अजीब रीति रिवाजों में,

कायनात के सारे नियम उसके लिये है 

वह सिंदूर लगाना भूल गई तो क़यामत,

और हर जगह स्टेटस में मैरिड दिखाना निहायत जरुरी वर्ना

जैसे मंगलसूत्र, सिंदूर, बिंदी कोई सुरक्षा चक्र हो।

स्त्री डरती है हर समय 

जब कोई पुरुष उसका दोस्त बनता है। एक कप चाय रेस्टोरेंट में पीना तो 

दूर बात करना भी प्रश्न चिन्ह? 

उसे बहुत सोच समझ कर करना पड़ता है, शब्दों का चयन... आत्मीयता, स्नेह, प्रेम का प्रदर्शन

और भावों की उन्मुक्त अभिव्यक्ति 

सदैव स्त्री के चरित्र पर एक प्रश्न चिह्न लगाती है ? 

स्त्री कि बेबाकियाँ उसे बिना सोचे समझे चरित्रहीन बनाती हैं। 

और उसकी अपनी उन्मुक्त हँसी 

एक अनकहे आमंत्रण का

पर्याय मान ली जाती है। जो कंलक बन उसे अभिशप्त कर जाती हैं।

पुरुष की खुली सोच को स्वीकार न करने के लिए अनेकों अप्रिय शब्दों को सुनना पड़ता हैं।

और साथ ही विवश होती है 

अपनी खुली सोच पर नियंत्रण रखने के लिए। 

वाह रे पुरुष प्रधान समाज? 

हर स्त्री चाहती हैं, ख़ूबसूरत लगना, बनना, संवरना, खिलखिलाना,

स्वादिष्ट भोजन पकाना, खिलाना, सबको ख़ुश रखना, उन्मुक्त गगन में उड़ना। और मिलकर घर की तमाम ज़िम्मेदारियाँ उठाना।

वह साझा करना चाहती है हर ज़िम्मेदारी को हर मन की भावनाओं को। जब वह समाज के दायरे के बाहर सोचती हैं तो कहीं जगह नहीं पाती।

पुरुष तो पुरुष स्त्री समाज ही उसे जलन और हेय की दृष्टि से देखता है।

स्त्री ही स्त्री कि दुश्मन बन जाती है 

और लुका छिपी से पुरुष समाज 

स्त्री में अपने अवसर तलाश करता है।

स्त्री की तमाम सोच, उसकी तमाम संवेदनाएँ और वेदनाएँ 

उसको घुटन भरी ज़िंदगी देती हैं। 

वह छटपटाती हैं, गरजती भी हैं।

पर  स्वयं की क़ैद से मुक्ति संभव है क्या ? 

क्या स्त्री को कभी समानता का दर्जा मिल पायेगा यह एक अनुत्तरित प्रश्न है? 

कब हल होगा या कभी नहीं …

स्त्री कोमलांगी है पर लाचार नहीं 

वह संवेदनशील है, तो पाषाण भी 

यह समझना होगा समाज को 

स्त्री कमजोर नहीं, अपने के लिये प्यार के लिये सहती हैं और जीती है 

क्यों की वह स्त्री है। 

- डॉ अलका पाण्डेय, मुम्बई


मैं नारी हूँ अबला नही

मैं नारी हूँ सृष्टि करता हूँ।

कठीन परीक्षा हर पल देती

हां मैं नारी हूँ नारी हूं।

- बृजकिशोरी त्रिपाठी, गोरखपूर 


आज की नारी 

नहीं मानती लक्ष्मण रेखा 

अपने रास्ते खुद बनाती है 

कमज़ोर नहीं है ये,  

नहीं मानती दकियानुसी बातों को 

बिना तर्क नही मानती खोखले रिवाज़ो को 

- वीना अचतानी, जोधपुर 


नारी तुम महान हो, तुम मौन हो

विपदाओं से हारी नहीं, ममता से भरी हो, सत्य की ज्वाला में भी हर पल खरी हो।

- सुरेंद्र हरडे कवि, नागपुर


नारी तो बस नारी है।

उसमें दुनिया सारी है।

8 मार्च ही महिला दिवस क्यों?

हर दिवस ही महिला दिवस हो।

- रानी अग्रवाल, मुंबई


मैं नारी हूंँ, हॉं गर्व है मुझे मैं नारी हूंँ, 

सदियों से दबाई कुचली, मसली गई। 

धीरे धीरे मैने पहचाना स्वयं को

और नारी से नारायणी बनती चली गई

- नीरजा ठाकुर नीर, पलावा डोंबिवली


नारी है जग का गौरव,

विश्व की पहचान है,

झांसी की रानी, मदर टेरेसा,

नारी तुम वह शक्ति हो जो खंडहर को भी घर बना देती हो।

तुम्हारें संस्कार घर का नींव है,

तुम्हारा कर्तव्य त्याग मनोबल 

ईट गारे का मिश्रण और विश्वास घर की दीवारें हैं। नारी ही हिन्दुस्तान है।

- शोभा रानी तिवारी, इन्दौर

नारी तुम वह शक्ति हो जो खंडहर को भी घर बना देती हो।

तुम्हारें संस्कार घर का नींव है,

तुम्हारा कर्तव्य त्याग मनोबल 

ईट गारे का मिश्रण और विश्वास घर की दीवारें हैं।

- पल्लवी झा

मैं स्त्री हूं, मैं पोषक हूं, मैं सृजक हूं, मेरे अनगिनत रूप हैं,अनगिनत नाम हैं, मैंने अनगिनत किरदारों को ओढ़ा है।

-डॉ आशालता नायडू, मुंबई

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