मि.प. संवाददाता/नई दिल्ली
इन दिनों भारत देश कि स्थिती कुछ विपरित दिशा में चल रही है। महिला हैल्प लाइन पीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए बनी हैं परंतु अनेक स्थानों पर महिला हैल्प लाइन में केवल महिलाएं ही शिकायत के लिए नहीं पहुंच रहीं, महिलाओं के सताए हुए पुरुष भी यहां शिकायत कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें उनकी बेरहम पत्नियों से बचाया जाए। अधिकांश पुरुषों की ओर से अपनी पत्नियों के विरुद्ध उन पर मां-बाप से अलग रहने के लिए दबाव बनाने, हिंसक होने, मारपीट करने, खाना न बनाने, पति के घर वालों से दुव्र्यवहार करने तथा शारीरिक संबंध न बनाने जैसी शिकायतें की जाती हैं।
एक अनुमान के अनुसार १९९८ से २०१५ के बीच ही महिलाओं के प्रति अत्याचारों से संबंधित धारा ४९८-ए के अंतर्गत २७ लाख से अधिक पुरुषों को गिरफ्तार किया गया। इसी को देखते हुए उत्तर प्रदेश के २ भाजपा सांसदों हरि नारायण राजभर (घोसी) तथा अंशुल वर्मा (हरदोई) ने 'राष्ट्रीय महिला आयोग' की शैली पर ही पुरुषों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक 'राष्ट्रीय पुरुष आयोग' गठित करने की मांग उठाई है, ताकि विभिन््ना कानूनों का दुरुपयोग करके पत्नियों द्वारा पतियों का उत्पीडन रोका जा सके। उक्त सांसदों के अनुसार वे यह मुद्दा संसद में भी उठा चुके हैं तथा 'पुरुष आयोग' के गठन के लिए समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से वे राजधानी में २३ सितम्बर को एक कार्यक्रम को सम्बोधित करेंगे।
एक सरकारी आंकडों के अनुसार महिलाओं से पीडित होकर आत्महत्या करनेवाले पुरूषों की संख्या दिनोंदिन बढती ही जा रही है। जो कि एक बेहद ही चिंता का विषय है। एक एनजीओं के मुताबिक हर नौ मिनट में एक पूरूष आत्महत्या कर रहा है।
हरि नारायण राजभर का कहना है कि, ''पुरुष भी अपनी पत्नियों के हाथों पीड़ित किए जाते हैं। महिलाओं को न्याय प्रदान करने के लिए तो देश में अनेक मंच और कानून बने हुए हैं परंतु पत्नियों के हाथों पीड़ित पतियों की व्यथा अभी तक सुनी नहीं गई है।'' इन दोनों सांसदों के अनुसार यह आयोग उन पतियों की शिकायतों की सुनवाई करेगा, जिन्हें उनकी पत्नियां कानून का दुरुपयोग करके परेशान करती हैं।
राजभर ने कहा,''मैं यह नहीं कहता कि हर महिला या हर पुरुष गलत होता है परंतु दोनों ही वर्गों में एक-दूसरे पर अत्याचार करने वाले मौजूद हैं, इसीलिए पुरुषों की समस्याओं को सुनने के लिए एक 'फ्रंट' होना चाहिए। अत: इसके लिए पुरुष आयोग का गठन एक सही पग होगा।'' राजभर की भांति ही अंशुल वर्मा ने कहा कि ''मैंने इस मामले को संसद की स्थायी समिति में भी उठाया है और भारतीय दंड संहिता की धारा ४९८-ए में संशोधन की आवश्यकता है जो पुरुषों को परेशान करने का एक माध्यम बन गई है।'' इस धारा में पति अथवा उनके रिश्तेदारों द्वारा पत्नियोेंं को दहेज के लिए परेशान करने आदि के आरोप में केस दर्ज किया जाता है।
उन्होंने कहा, ''हम यहां समानता की बात कर रहे हैं। पुरुषों को भी इस प्रकार के मामलों में कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी गत वर्ष कहा था कि उन्हें बड़ी संख्या में पुरुषों को गलत ढंग से फंसाए जाने की शिकायतें मिलती हैं।'' ''इसी कारण मेनका गांधी ने राष्ट्रीय महिला आयोग को ऑनलाइन शिकायत प्रणाली में ऐसे पीड़ित पुरुषों के लिए अपना पक्ष रखने के उद्देश्य से एक विंडो उपलब्ध करवाने के लिए कहा था।'' अंशुल वर्मा के अनुसार मेनका गांधी ने यह भी कहा था कि उन्हें इस बात का पता है कि इस प्रकार के पग का महिलाओं द्वारा विरोध किया जा सकता है और पुरुष भी अपने विरुद्ध प्रत्येक केस को झूठा साबित करने की कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं। जो भी हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अनेक पत्नियों अथवा अन्य महिलाओं द्वारा पतियों का उत्पीडन भी एक वास्तविकता है, जिसके संतोषजनक समाधान की दिशा में अवश्य पग उठाया जाना चाहिए।
Post a Comment
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.