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मासूम बच्चे कंधों पर बढ़ते बस्ते के बोझ से परेशान हैं। शायद इसीलिए भारत सरकार स्कूली बच्चों के लिए बस्तों का बोझ कम करने को लेकर ई बस्ता कार्यक्रम शुरू करने जा रही है। इस कार्यक्रम के तहत स्कूली बच्चे अब अपनी रुचि के अनुसार पाठ्य सामग्री डाउनलोड कर सकेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने हाल ही में २५ केंद्रीय विद्यालयों में प्रायोगिक तौर पर स्कूली बच्चों के बस्तों का बोझ कम करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया था। उसमें छात्रों और शिक्षकों ने काफी रुचि दिखाई थी। तभी केंद्र सरकार ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने का मन बनाया है।

दरअसल मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अभी कुछ ही समय पहले देश भर के छात्रों को डिजिटल शिक्षा से जोड़ने की प्रतिबद्धता दोहराई थी। उसी के तहत ई बस्ता और ई पाठशाला कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा रहा है। एनसीईआरटी भी स्कूलों में दर्जे एक से लेकर १२वीं तक की कक्षा के लिए ई सामग्री तैयार कर रही है। एनसीईआरटी के द्वारा अब तक २,३५० ई सामग्री तैयार की जा चुकी हैं। साथ ही ५० से अधिक तरह के ई बस्ते भी तैयार किए जा चुके हैं। अब तक ३,२९४ ई बस्तों के साथ में ४३,८०१ ई सामग्री को डाउनलोड भी कर लिया गया है। केवल इतना ही नहीं मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने एक एप भी तैयार कर लिया है। केंद्र सरकार ने ई बस्ता के रूप में देश के छात्रों की मदद को तेजी से अपना हाथ बढ़ाया है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह योजना तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक देश में छात्रों के लिए सस्ते टैबलेट और स्कूलों को फ्री इंटरनेट की सुविधा मुहैया नहीं करा दी जाती है। सही बात यह है कि सरकार ने इसे अभी पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया है।
उम्मीद है बहुत जल्दी सरकार कुछ सुधार के बाद इसे पूरी तरह लागू कर देगी। कहने की जरूरत नहीं कि आज तकरीबन सभी स्कूल कोर्स की पढ़ाई, होमवर्क को शैक्षिक विकास के लिए जरूरी मान रहे हैं। प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में बनी समिति ने शुरुआती कक्षाओं में बच्चों को बस्ते के बोझ से मुक्त करने की सलाह दी थी। इससे जुड़े तमाम अध्ययन भी बताते हैं कि बच्चों के कंधों पर लादे जाने वाले भारी-भरकम बस्तों के बोझ का उनकी पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता से कोई सीधा संबध नहीं है। शायद यही वजह है कि बस्ते का यह बोझ अब बच्चे की शिक्षा, समझ और उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। उदाहरण बताते हैं कि बस्तों के भारी वजन और उनके होमवर्क के चलते बच्चों की आंखें कमजोर हो गई हैं, सिर में दर्द रहने लगा है तथा उनकी अंगुलियां टेढ़ी होनी शुरू हो गई हैं। बच्चे स्वप्नों में अब परियों के दृश्य न देखकर होमवर्क को लेकर बुदबुदाते हैं। बाल मनोविज्ञान से जुड़े अध्ययन भी बताते हैं कि चार साल से लेकर बारह साल तक की उम्र के बच्चों के व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास होता है।

ऐसे में बच्चों के विकास के लिए किताबी ज्ञान की तुलना में भावनात्मक सहारे की ज्यादा जरूरत होती है। साथ ही प्ले-वे लर्निग यानी खेल-खेल में सीखने की विधि से बच्चों को पढ़ाने से उनकी प्रतिभा अधिक मुखरित होती है। पिछले दिनों देश के कई बड़े महानगरों में ऐसोचैम का दो हजार बच्चों पर किए गए सर्वे में साफ कहा गया था कि यहां ५ से १२ वर्ष के आयु वर्ग के ८२ फीसद बच्चे बहुत भारी स्कूल बैग ढोते हैं। इस सर्वे ने यह भी साफ किया कि दस साल से कम उम्र के लगभग ५८ फीसद बच्चे हल्के कमर दर्द के शिकार हैं। देश में कुछ समय पहले बच्चों की पीठ दर्द और कंधों की जकड़न की समस्या से निजात दिलाने हेतु मानवाधिकार आयोग ने दखल देते हुए अपना फैसला सुनाया था। आयोग का कहना था कि निचली कक्षाओं के बच्चों के बैग का वजन पौने दो किला और ऊंची कक्षाओं के बच्चों के बैग का वजन साढ़े तीन किलो से अधिक नहीं होना चाहिए।

- डॉ. विशेष गुप्ता
(लेखक समाजशास्त्र के प्राध्यापक हैं)

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