संवाददाता / मुंबई/दिल्ली –
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हजारों दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के सपनों पर प्रशासन की कलम ने एक बार फिर भारी चोट कर दी है। 1 अगस्त 2025 को जारी हुए नए कार्यालय ज्ञापन नेत्रहीनों के लिए बने पुराने सहूलियतों को न केवल सीमित करता है, बल्कि उनकी बराबरी की लड़ाई को भी अधूरा छोड़ता दिखाई देता है।
नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इंडिया (NAB) ने इस ज्ञापन के खिलाफ औपचारिक विरोध दर्ज करते हुए इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और दृष्टिबाधितों की समान भागीदारी के खिलाफ* करार दिया है। NAB का कहना है कि यह फैसला सीधे-सीधे संविधान में दिए गए अधिकारों को चुनौती देता है और नेत्रहीन समुदाय को शिक्षा व रोजगार की मुख्यधारा से अलग करता है।
दिशानिर्देशों पर गंभीर आपत्तियाँ
* नए नियम उम्मीदवारों को उनकी सुविधा चुनने की स्वतंत्रता से वंचित करते हैं।
* प्रौद्योगिकी आधारित समाधान का हवाला तो दिया गया है, लेकिन इसे लागू करने की कोई ठोस योजना सामने नहीं आई।
* परीक्षा आयोजक निकायों को स्पष्ट समयसीमा सार्वजनिक करनी चाहिए थी, जिससे उम्मीदवार जान सकें कि तकनीक कब उपलब्ध होगी।
* लिपिक (स्क्राइब) पर तत्काल प्रतिबंध लागू करना, तब तक अनुचित है जब तक तकनीक व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हो जाती।
* परीक्षाओं में लिपिक की व्यवस्था करना आयोजकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए जरूरी समय और संसाधनों का कोई जिक्र नहीं है।
NAB की माँगें - NAB ने स्पष्ट कहा है कि:
1. विवादित दिशानिर्देशों पर तुरंत रोक लगाई जाए।
2. तकनीक आधारित विकल्प लागू करने के लिए सार्वजनिक और ठोस समयसीमा घोषित हो।
3. जब तक यह व्यवस्था पूरी तरह से स्थापित नहीं हो जाती, पुराने दिशानिर्देशों को बहाल किया जाए।
NAB की कड़ी चेतावनी
NAB के अध्यक्ष ट्रस्टी डॉ. विमल कुमार ने भावुक शब्दों में कहा:
"यह केवल एक परीक्षा का मामला नहीं है। यह नेत्रहीनों की अस्मिता, आत्मसम्मान और उनके संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई है। जब तक इन दिशानिर्देशों में जरूरी संशोधन नहीं होते, हम चुप नहीं बैठेंगे। प्रशासन को हमारी आवाज सुननी ही होगी।"
संघर्ष की तस्वीर
मुंबई के कई नेत्रहीन छात्रों ने भी इन दिशानिर्देशों को लेकर आक्रोश जताया। अंधेरी के रहने वाले छात्र सुमित यादव का कहना है – “हम वर्षों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। अब अचानक ये नियम हमारे भविष्य पर ताला लगाने जैसे हैं। अगर हमें लिपिक भी नहीं मिलेगा और तकनीक भी उपलब्ध नहीं होगी, तो हम क्या करेंगे?”
दादर की दृष्टिबाधित अभ्यर्थी रीमा शाह भावुक होकर कहती हैं – “आयुष्मान भारत कार्ड से इलाज नहीं मिल रहा, और अब शिक्षा-नौकरी के मौके भी छीने जा रहे हैं। हमारी जिंदगी हर मोड़ पर संघर्ष का नाम बन चुकी है।”
सवालों के घेरे में व्यवस्था
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल तकनीकी सुविधाओं का नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और राजनीतिक इच्छाशक्ति का है। अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो यह एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।
यह पूरा विवाद एक गहरी पहेली छोड़ता है— क्या यह देश नेत्रहीन समुदाय को समान अवसर देगा या फिर उनके सपनों को अंधेरे में ही कैद रखेगा?

Post a Comment