फिल्म समीक्षा - 3 स्टार
संदीप बसवाना के निर्देशन में बनी हिंदी फिल्म 'हरियाणा' को यदि दर्शक देखते हैं तो उन्हें न तो इसमें कोई प्रेम कहानी या फिर खाप जो कि प्रेमी युगल की निर्ममतापूर्वक हत्या नहीं दिखाई देगा। बल्कि इसमें भाइयों के बीच परस्पर प्रेम को दर्शाया गया है।
इस फिल्म में बड़े भाई का अपने छोटे भाइयों के प्रति अटूट स्नेह देखकर दर्शक भावविभोर हो जाएंगे।
यह एक पारिवारिक मनोरंजक फिल्म है जिसमें बॉलीवुड का कोई बड़ा स्टार नहीं है फिर भी इसका जादू चल सकता है। इस फिल्म में एक और रोचक पहलू इसमें कलाकारों द्वारा बोला गया संवाद है जो कि हरियाणवी भाषा में है। दर्शकों ने इस भाषा को दंगल और सुल्तान जैसी सफल फिल्मों में खूब पसंद किया था। इस फिल्म में टीवी का जाना माना चेहरा यश टोंक की उपस्थिति प्रभावी है।
फिल्म की कहानी में तीन अविवाहित भाई हैं। जिसमें बड़ा भाई महेंदर (यश टोंक) हरियाणा के एक गांव का संपन्न किसान है। मंझला भाई जयबीर (रॉबी) एग्रीकल्चर कॉलेज में पढ़ाई करता है और होस्टल में रहता है। तीसरा भाई जुगनू (आकर्षण सिंह) गांव में ही अपने मित्रों के साथ मस्त है और सिनेमा देखने का शौकीन है।
फिल्म देखते देखते वह हीरोइन आलिया भट्ट का दीवाना बन जाता है और उससे शादी का ख्वाब देखता है।
वहीं बड़ा भाई महेंदर खेती किसानी के व्यवसाय में व्यस्त रहता है और अपने छोटे भाइयों पर प्यार लुटाता है, उनके हर आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। जब वह शादी के लिए विमला (अश्लेषा सावंत) से मिलता है तो उसकी खूबसूरती के साथ विचार पसंद आता है। दूसरी तरफ जयबीर कॉलेज में एक लड़की वसुधा (मोनिका शर्मा) से एकतरफा प्यार करता है लेकिन वसुधा किसी और को चाहती है। इससे ईर्ष्या वश वह वसुधा के प्रेमी को पिटवा देता है। फिर उसे आत्मग्लानि होता है और दोनों प्रेमियों को मिलाने का प्रयास करता है। चूंकि वसुधा जाट समाज की होती है और उसका प्रेमी अन्य समाज का इसलिए मामला बिगड़ जाता है। फिर महेंदर अपनी पहुंच और दबदबे के बल पर अपने भाई के पक्ष में आकर दोनों प्रेमियों की शादी करा देता है। महेंदर के इस कारस्तानी से जाट समाज उसके विरुद्ध हो जाता है वहीं विमला के दिल में इज्जत और बढ़ जाती है।
उधर जुगनू की आलिया के प्रति दीवानगी को देखकर महेंदर उसे मुम्बई भेज देता है। मायानगरी में जुगनू की परेशानी को जानकर महेंदर भी अपने लोगों के साथ मुम्बई आ जाता है। फिर किस प्रकार जुगनू के सर पर सवार इश्क का भूत उतरता है यह फिल्म में रोचकता लाता है। अंततः सब भाई गांव में वापस आ जाते हैं और महेंदर चुनाव भी जीत जाता है और विमला जैसी सुंदर सुशील पत्नी भी मिल जाती है।
फिल्म के निर्देशक ने एक बढ़िया संदेश देने का प्रयास किया है। यह फिल्म एक क्षेत्रीय भाषा की फिल्म लगती है क्योंकि इसमें यश को छोड़कर अपरिचित चेहरे हैं साथ ही भाषा और ज्यादातर लोकेशन भी हरियाणा के ही हैं।
फिल्म का संगीत सामान्य है। दर्शक इसका आनंद तभी उठा सकते हैं जब वे अपने दिमाग से स्टार का ध्यान हटा दें।
इस फिल्म को मिलता है तीन स्टार
- संतोष साहू
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