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मुम्बई। फिल्म शाबाश मिथु रिलीज़ हो चुकी है जो कि महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिथाली राज की बायोपिक है। फिल्म देखने जाने से पहले दर्शकों के मन में यह पहला सवाल उठता है कि आखिर यह फिल्म देखने क्यों जाएं? तो इसका जवाब है शाबास मिथु क्रिकेटर मिथाली राज की जीवनी है जिसमें दिखाया गया है कि क्रिकेट केवल लड़कों का ही खेल नहीं। महिला तेंदुलकर नाम से विख्यात मिथाली ने महिला क्रिकेट जगत में इतिहास रचा है। छह बार वर्ड कप खेलने वाली अकेली महिला। टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक, वन डे और टी ट्वेन्टी में सर्वाधिक रन बनाने वाली खिलाड़ी मिथाली के बारे में जितना बताया जाए कम है।

फिल्म की कहानी मिथाली के बचपन से शुरू होती है कि कैसे भरतनाट्यम की स्टूडेंट क्रिकेट खेलकर पूरी दुनिया में अपना नाम रौशन करती है। बचपन में नूरी नाम की टॉमबॉय लड़की भरतनाट्यम सीखने आती है और वहाँ मिथाली से उसकी दोस्ती होती है। वह मिथाली के मन में क्रिकेट के प्रति प्रेम जगाती है और सिखाती भी है। कोच संपत मिथाली को क्रिकेट खेलता देख प्रभावित होते हैं फिर उसके पैरेंट से बात कर क्रिकेट की सारी बारीकियां भी सिखाते हैं। मिथाली का नेशनल लेवल क्रिकेट वीमेन टीम में चयन हो जाता है। जहाँ उसे सीनियर का तंग करते हैं लेकिन मिथाली के बल्ले के प्रदर्शन के आगे वे हार मान जाते हैं। मिथाली की बल्लेबाजी सभी को प्रभावित करती है और उसे कम समय में ही वीमेन टीम की कैप्टन बना दी जाती है। उसकी सीनियर सुकुमारी को मिथाली से ईर्ष्या होती है और वह उसके रास्ते का रोड़ा बनती है। मिथाली ने कई विचार दिए जिससे महिला क्रिकेट टीम में सुधार आये। एक बार वह क्रिकेट छोड़ने का मन भी बना लेती है लेकिन आखिर वह वर्ड कप में हिस्सा लेती है महिला क्रिकेट टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाती है साथ ही देश में महिला क्रिकेट टीम को पहचान भी दिलवाती है।

फिल्म में अभिनेत्री तापसी पन्नू ने मिथाली के किरदार में जान डालने की भरपूर कोशिश की है। अन्य सहयोगी कलाकार भी ठीक ठाक हैं। विजय राज ने कोच संपत के किरदार को प्रभावपूर्ण ढंग से निभाया है। बिजेंद्र काला, देवदर्शिनी, शिल्पी मारवाह ने भी अच्छा काम किया है।

फिल्मांकन की बात करें तो फिल्म की शुरुआत में ऐसा लगता है कि टॉमबॉय नूरी फिल्म की मुख्य भूमिका में होगी लेकिन तीसरे सीन में साफ हो जाता है कि वह मुख्य किरदार की प्रणेता है। कहते हैं कि संघर्ष से इंसान निखरता है लेकिन मिथाली के जीवन में संघर्ष नहीं था वह अपने तकनीक और जुनून से फतेह हासिल करती है जिसके कारण निर्देशक ने फिल्म में दर्द और संघर्ष नहीं दिखा पाया। एक काल्पनिक दोस्त के रूप में नूरी का किरदार पिरोया पर वह सफल नहीं रहा पर मनोरंजक रहा। एक मात्र विलेन सीनियर सुकुमारी को दिखाया गया है। मिथाली राज के इस बायोपिक में और खोज करने की आवश्यकता थी लेखक और निर्देशक को क्योंकि कहानी अधूरी सी लगती है। फिल्म में पुरुष क्रिकेट टीम की प्रसिद्धि देख महिला टीम का उदास होना यह दिखाता है कि क्रिकेट बोर्ड महिला टीम की उपेक्षा करता है जिसे मिथाली ने अपने खेल से सभी का ध्यान आकर्षित किया और सुधार लाया। फिल्म की कहानी काफी लंबी लगती है। निर्देशक सृजित सरकार की मेहनत रंग लाने में थोड़ी चूकती है। क्रिकेट खेलने का दृश्य भी दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पायेगा। तापसी की मेहनत फलित होते नहीं दिख रही। मिथाली राज एक बेहतर बायोपिक डिजर्व करती थी यह फिल्म उसे साकार कर पाने में सफल होती नहीं दिख रही। क्रिकेट जगत के दिग्गजों पर बनी फिल्म में 'एम एस धोनी' को छोड़कर कोई सफल नहीं रही। बायोपिक सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स, अजहर, 83 की लाइन में कहीं शाबाश मिथु शामिल ना हो जाये। क्रिकेट मिथाली राज ने महिला क्रिकेट टीम और हमारे देश को शिखर तक पहुंचाया है इसलिए इस फिल्म को एक बार देखना तो बनता है।

इस फिल्म को तीन स्टार मिलते हैं।

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