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मुंबई। वर्तमान में कई महिलाएं थायराइड की बीमारी से पीड़ित हैं। थायराइड की समस्याएं, जैसे हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म, हार्मोनल असंतुलन, मासिक धर्म, वजन बढ़ने, त्वचा, बांझपन और हृदय की समस्याओं वाली महिलाओं में अधिक होती हैं। इसलिए थायराइड रोग का समय पर निदान और उपचार आवश्यक है।

भारत में थायराइड विकार के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसके पीछे जागरूकता की कमी हो सकती है। थायरॉईड शरीर में थायराइड हार्मोन का उत्पादन करता है जो शरीर में कई गतिविधियों को नियंत्रित करता है, जिसमें आप कितनी तेजी से कैलोरी जलाते हैं और आपके दिल की धड़कन कितनी तेज है। थायरॉईड के मरीज में इस बिमारी के कारण बहुत अधिक या बहुत कम हार्मोन बनाता है। हाइपोथायरायडिज्म तब देखा जाता है जब थायरॉईड पर्याप्त थायरॉईड हार्मोन नहीं बनाता है। इसे एक अंडरएक्टिव थायरॉईड के रूप में भी जाना जाता है। हाइपरथायरायडिज्म या अति सक्रिय थायरॉईड में, थायरॉईड आपके शरीर की आवश्यकता से अधिक थायरॉईड हार्मोन बनाने का कारण बनता है।

खारघर स्थित मदरहूड हॉस्पिटल के सलाहकार प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरभि सिद्धार्थ ने कहा कि हाइपोथायरायडिज्म महिलाओं में सबसे व्यापक थायरॉइड डिसफंक्शन के रूप में है। भारत में थायरॉईड बिमारी के मरीजों की संख्या बढती दिखाई दे रही है। सदयस्थिती में हर 10 में से एक महिला हाइपोथायरायड से पीड़ित है। महामारी और कोविड लॉकडाउन और गतिहीन लॉकडाउन के कारण समाज में हाइपोथायरायड भी बढ़ रहा है और इतने सारे मामले पिछले साल देखे गए थे। थायरॉईड का स्तर अधिक होने के कारण एक या दो गर्भपात हुए है। अधिकतर यह बिमारी ३० से ३५ वर्ष के बीच होती है। लेकिन अब बदलती लाइफस्टाइल के चलते यह बिमारी २५ ते ३० साल की उम्र में भी देखने को मिल रहा है। थायरॉईड विकारों से निपटना अनिवार्य है क्योंकि वे मासिक धर्म के साथ समस्या पैदा कर सकते हैं।

डॉ सुरभि ने कहा, "थायरॉईड मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करता है। बहुत अधिक या बहुत कम थायरॉईड हार्मोन मासिक धर्म को बहुत हल्का, भारी या अनियमित बना सकता है, या कुछ महीनों के लिए मासिक धर्म को रोक सकता है जिसे एमेनोरिया कहते है। ये थायरॉयड समस्याएं गर्भावस्था के दौरान प्रारंभिक रजोनिवृत्ति और यहां तक कि बच्चों में जटिलताएं भी पैदा कर सकती हैं। थायरॉईड के चलते दिल की धडकन अनियमित होना, नैराश्य, मन बैचेन होना, चिडचिडापन की समस्या देखने को मिलती है। अन्य समस्याएं जैसे सूखी, पीली त्वचा, खुजली, बालों का झड़ना, धीरे-धीरे ठीक होने वाले घाव, और मोटे, सूखे और भंगुर नाखून आमतौर पर थायराइड के मरीजों में देखे जाते हैं।

मुंबई स्थित नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी के फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. स्नेहा साठे ने कहा कि थायरॉइड हार्मोन शरीर के चयापचय, ऊर्जा के स्तर, शरीर के वजन, आंतरिक तापमान, मासिक धर्म चक्र, फेफड़ों और हृदय और अन्य महत्वपूर्ण अंगों के कामकाज के नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय लोगों में थायराइड विकार आम हैं। हाइपोथायरायडिज्म यह बिमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है। हाइपोथायरायडिज्म के शुरुआती चरणों में, अक्सर कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। लेकिन हाइपोथायरायडिज्म बिमारी पर ध्यान न देनेपर वजन बढ़ना, मासिक धर्म में गड़बड़ी, बांझपन, अवसाद, गुर्दे की बीमारी और हृदय की समस्याएं हो सकती है। हाइपरथायरायडिज्म का सबसे आम कारण ग्रेव्स रोग है। महिलाओं में, हाइपरथायरायडिज्म मासिक धर्म की अनियमितता, बांझपन (इनफर्टिलिटी) और गर्भपात का खतरा बढ़ा सकता है। पुरुषों में, हाइपरथायरायडिज्म शुक्राणुओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी ला सकता है।

डॉ. साठे ने आगे कहा कि थायरॉईड का समय रहते निदान व इलाज होना बहुत जरूरी हैं। आपके टीएसएच स्तर को मापने के लिए एक साधारण रक्त परीक्षण से थायरॉईड का निदान किया जा सकता हैं।

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