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(लेखक: प्रथमेश माल्या, एवीपी- रिसर्च नॉन एग्री कमोडिटी एंड करेंसी, एंजेल ब्रोकिंग लिमिटेड)

पारिवारिक उत्सव हों या धार्मिक उत्सव, सोना भारतीय उपभोक्ता की सांस्कृतिक जरूरतों का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। एक भौतिक संपत्ति के रूप में पीली धातु गहने बनाने में महत्वपूर्ण रही है और यह पारंपरिक रूप से हम भारतीयों द्वारा बिक्री योग्य संपत्ति के रूप में नहीं देखी गई है। फिर भी, यह मार्केट डायनेमिक्स कई अन्य निर्धारकों के साथ बाजार पर प्रभाव डालते हैं और यह सप्लाई और डिमांड साइकिल में योगदान करते हैं। ये अन्य कारकों के बीच आर्थिक, नियामक, सांस्कृतिक रुझान, मुद्रास्फीति, और समृद्धि हो सकते हैं। हालांकि, मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले 5 सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर निम्नानुसार हैं। 
आर्थिक अनिश्चितता: जब किसी संकट के कारण आर्थिक विकास ठप हो जाता है, तो आमतौर पर इक्विटी बाजार, वैश्विक व्यापार और फाइनेंशियल इकोसिस्टम को प्रभावित करता है। सप्लाई और डिमांड में उतार-चढ़ाव के कारण बाजार में अस्थिरता पैदा होती है। यह अनिश्चितता निवेशकों को अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने को मजबूर करती है क्योंकि वे अपने फाइनेंसेस को सुरक्षित विकल्पों के माध्यम से हासिल करने की ओर आगे बढ़ते हैं। ऐसे परिदृश्य में, लोग निवेश के लिए असेट क्लास की ओर रुख करते हैं। इनमें सोना शीर्ष विकल्प है, जिससे मांग बढ़ती है और इसकी कीमत में वृद्धि होती है।
इसी तरह, मौजूदा कोविड-19 संकट के आने से दुनिया भर में आर्थिक कहर बरपा है। हमारे देश में भी सोने की कीमत अप्रैल में ही 11% से अधिक बढ़ गई है। 6 महीने की अवधि में, सोने की कीमतें 30,000 रुपए से बढ़कर आज की स्थिति में 54,000 रुपए प्रति दस ग्राम तक पहुंच गई है।
सरकारी नीतियां: भारत सोने के शीर्ष दो वैश्विक उपभोक्ताओं में शामिल है। सरकार के फैसले सोने में मूल्य वृद्धि को प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं। जब रिजर्व बैंक अपनी ब्याज दरों और राजकोषीय नीति, सोने के वार्षिक अधिग्रहण, सोवरिन बांड आदि की घोषणा करता है, तो बाजार की धारणा पर इसके कई प्रभाव होते हैं, जो कीमतों को ऊपर या नीचे ले जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, संकट के समय में फाइनेंशियल बेलआउट पैकेज, संपत्ति पर कराधान की नीति, और अन्य सूक्ष्म नीति संबंधी फैसले पूरी तरह सरकार के होते हैं। इस तरह के फैसले अक्सर आर्थिक संकट के व्यापक आर्थिक परिणामों को देखते हुए लिए जाते हैं। हालांकि, आर्थिक रिवाइवल नकदी प्रवाह और जिंस बाजारों में तेज वृद्धि से जुड़ा हुआ है।
मुद्रास्फीति: आर्थिक मंदी का मुकाबला करने के लिए, सरकारें अक्सर अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने के लिए मल्टी-बिलियन डॉलर के प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा करती हैं। इससे ऐसा वातावरण बनता है जो नागरिकों को अतिरिक्त खर्च की सुविधा देता है। हालांकि, कई लोग सोने में निवेश के माध्यम से अपने फाइनेंसेस को सुरक्षित करते हैं।
पिछले दो दशकों के साक्ष्य से संकेत मिलता है कि वैश्विक आर्थिक संकटों के बाद सोने में मूल्यवृद्धि हुई है। इसके अलावा, यह भी विश्वास है कि सोने के बाजार मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को समायोजित कर सकते हैं, क्योंकि भयभीत निवेशक अक्सर गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ), सोवरिन बांड और सामान्य रूप से सोने के असेट क्लास में निवेश के माध्यम से मुद्रास्फीति के प्रभाव को रोकते हैं।
जनसंख्या और जनसांख्यिकी (डेमोग्राफिक्स): भारत के डेमोग्राफिक डिविडेंड लाभांश के बारे में अक्सर बात होती है और इसे देश के लिए वरदान बताया जाता है, इस विश्वास के साथ कि यह विकास के अवसर बनाने में मदद कर सकता है। बहुत युवा आबादी के साथ जहां हमारी कुल जनसंख्या का 50% से अधिक 40 वर्ष से कम आयु का है, संस्थानों को मिलेनियल्स और युवा पेशेवरों के खर्च के पैटर्न में बदलाव की उम्मीद होती है। उम्मीद यह है कि वे सोने के असेट क्लास में निवेश करेंगे बजाय कि वे इसे भौतिक संपत्ति के रूप में खरीदेंगे या किसी और तरीके से। परंपरागत रूप से, परिवार के बुजुर्ग सोने की भौतिक खरीद के लिए व्यापारी स्टोर और ज्वैलर के पास जाते थे। वर्तमान में, सरकार के सोवरिन गोल्ड बांड और डिजिटल पेमेंट गेटवे पर उपलब्ध कराए गए ई-गोल्ड ऑप्शन जैसे विकल्पों की एक सूची है। मिलेनियल्स डिजिटल सर्विस प्रोवाइडर्स के टारगेट ऑडियंस हैं, क्योंकि वे केवल एक बटन पर क्लिक करने और खरीदने-बेचने के कार्यों के साथ सोने की भौतिक खरीद से परे निवेश करने पर विचार करने की संभावना रखते हैं।
इसके अतिरिक्त, सोना दक्षिण और पश्चिमी भारतीय संस्कृतियों का आवश्यक और अनुष्ठानिक हिस्सा है। त्योहारी सीजन में अक्सर सोने की कीमतें बढ़ जाती हैं। लोग आमतौर पर आभूषणों के लिए सोने के गहने और जेवरात प्राप्त करते हैं, जो अब भारतीय सोने की खपत का अविभाज्य तत्व बन गया है।
बढ़ती आय: पिछले कुछ दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था कई गुना बढ़ गई है। इससे मध्यम आय वर्ग की आय में वृद्धि हुई है। इससे उनकी क्रय शक्ति भी प्रभावित हुई है। विभिन्न जिंस बाजारों पर वेल्थ क्रिएशन के कई अनपेक्षित परिणाम आए हैं। चूंकि, भारत सोने के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है, इसलिए नए कमाए धन से अतिरिक्त सोना खरीदा गया है।
बढ़ती आय के साथ, लोग सोने के असेट क्लास में निवेश करना और उसे खरीदना चाहते हैं। भारत एक परिवार-उन्मुख समाज होने के नाते, अतिरिक्त आय अधिक खर्च का कारण बनती है। इसे आमतौर पर सोने की खरीद के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। खासकर, यह देखते हुए कि सोने के गहने शुभ प्रासंगिकता के साथ स्टेटस सिंबल बन गए हैं। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के हालिया अध्ययन का आकलन कहता है कि आय में थोड़ी भी वृद्धि हो तो सोने की कीमत में परिणामी वृद्धि होती है।

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