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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का ऑनलाइन कवि सम्मेलन का 44 दिवस श्रृंगार रस पर आयोजित किया गया। मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया कि लॉकडाऊन और कोरोना जैसी महामारी से बचाव और घर रहकर देश विदेश में बैठे साहित्यकारों को एक मंच पर लाना हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार नित्य नया सृजन और नव साहित्यकारों को मार्गदर्शन देना तथा कोरोना योद्धा को सम्मान व उनकी निष्ठा तथा सहयोग का अभिनंदन करना अग्निशिखा के संग काव्य के विविध रंग में हर बार नया विषय होता है।
44 वे कवि सममेलन में मुख्य अतिथि अभिलाष अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार), निर्णायक डॉ अरविंद श्रीवास्तव असीम रहे।
मंच संचालन डॉ अलका पाण्डेय, डॉ प्रतिभा कुमारी पराशर, जनार्दन शर्मा, सुरेन्द्र हेगड़े, चंदेल साहिब ने किया।
माँ शारदे की वंदना की अंजली तिवारी ने एवं आभार व्यक्त मधु वैष्णवी ने किया। सबने सरस्वती वंदना के बाद कोरोना योद्धाओं का सलामी दी व कार्यक्रम शुरु किया।
अभिलाष अवस्थी - एक खंजर भी मेरी जद में है, उसकी गर्दन भी मेरी हद में है।
अंकिता सिन्हा न- रब की दुआएँ तुझे मिलती रहेंगी, मेरी प्यार वफा़एँ तुझे मिलती रहेगी।
डॉ प्रतिभा कुमारी परासर - आजकल बहुत याद आते हो, रात भर नींद भी चुराते हो।
चंदेल साहिब - पीताम्बर मोर मुकुट धारण कर, चाँदनी रात में मोहन वृंदावन आओ, फ़िर ख़्वाब अग़र हो जाओ तो ग़म क्या।
डॉ अलका पाण्डेय - प्रियतम किधर गए, सखी मुझे बतलाओ, प्रियतम किधर गये सूने मन में आग लगा कर
 नैनों से बिरहा बरसा कर, अधरों को मेरे तरसा कर, सांसों को मेरी महका कर।
 डॉ अरविंद श्रीवास्तव - ऋतु सुनहरी हो गई है, प्रीत गहरी हो गई है, आपसे मिलने की खातिर
बांह सागर है पसारे और तुम उड़ती गगन में, कह रहे ये चांद तारे।
 मधु वैष्णव - अमृत रस की बहती मखमली रसधार, समर्पण नेह का आंचल ओढ़े चांदनी खिली।
सीमा दुबे - ना श्वेत श्वेत ना श्याम श्याम वह सुंदरता की प्रतिमा है।
 गोवर्धन लाल बघेल - आखेटक में प्रवीण कामनी दीयो कलेजा छेद, नयन कटारी वार कब लगी ना जाना भेद।
इन्द्राणी साहू "साँची" - मोहिनी छवि है प्यारी, मुरली की धुन न्यारी, सुध बुध खोए सब, छलिया की प्रीत में।
ओमप्रकाश पांडेय - माथे की तेरी छोटी सी बिंदिया, नयनों के तेरे तीखे काजल, कानों मे छूमता ये तेरा झुमका
जब दिखता मेरे आंगन में, फिर और क्या चाहिए मेरे जीवन को।
सुनीता चौहान - बहुत सुन्दर रूप है मेरा, ये वादियां गुनगुना रही हैं, कुदरत ने अद्भुत श्रृंगार किया है,
बहती नदियां ये सुना रही हैं।
 दिनेश मिश्रा - रास्ता उदास था क्योंकि आज वो घर से न निकली, पेड़ पौधे भी मुरझा रहे थे,
क्योंकि आज वो घर से न निकली।
 डॉ नेहा इलाहाबादी - जुबाँ पे मेरी गुल फ़िसानी रहेगी, हमारी तुम्हारी कहानी रहेगी,
अँगूठी का मुझको नगीना बना लो, यही उम्र भर की निशानी रहेगी।
शुभा शुक्ला निशा - नारी तुम सौंदर्य शालिनी हो सौम्य शील पथ गामिनी हो
जग की असहय भीषण तपिश में सुरसरिता की प्रदायिनी हो।
 सुनीता चौहान - बहुत सुन्दर रूप है मेरा, ये वादियां गुनगुना रही हैं, कुदरत ने अद्भुत श्रृंगार किया है,
बहती नदियां ये सुना रही हैं।
डॉक्टर लीला दीवान - झरोखे में बैठे इंतजार करूं तुम आओ तो मैं सिंगार करूँ।
अनिता झा - पिया मन इज़हार लिए आई हूँ, आँखों में सिंदूरी ललाट लाली बन छाई।
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी - कस्तूरी केस तुम्हारे सुलझा सुलझा कर हारे लो बीत गई सारी रात हो सकी अभी ना पूरी बात मिलन तो शेष अभी है।
रागिनी मित्तल - जबसे दिल मेरा तेरे दिल से मिला, हम भी सपने सजाने लगे
चिट्ठियां तेरी पढ़ते गुसलखाने में, अब हम बेवक्त नहाने लगे।
पद्माक्षी शुक्ल - अंतर मन सजा दे, नयन बंद करके, ज्योति जगा दे,
ढुंढ रही आज, मोहक मनमोहन को, बंसी के सुरसे, स्पंदन जगा दे।
संजय कुमार मालवी - माँ आज तो क्या खूब सूरत लग रही हो, रोज की तुलना मे आज ज्यादा सज रही हो।
मदन मोहन शर्मा - कपोलों पर लज्जा की भीनी सी मुस्कान लिए गर्म सांसों में।
आशा जाकड़ - बागों में फूल खिले, फूलों से खुशबू मिलें, कलियाँ गुनगुना रही आज सजना घर आ रहे।
वैष्णो खत्री 'वेदिका' - चल यूँ ही राजा वसन्त, बन जाएँ हम तुम, अल्प समय में, सब सुख दे जाएँ हम तुम।
डॉ पुष्पा गुप्ता - सांसों में बसते हो तुम, तुमसे ये धड़कन चलती।
रामेश्वर प्रसाद - आंखो का काजल, मोतियों की माला चलती मदमस्त, चितवन कातिलाना।
विजयकांत द्विवेदी - है खड़ी फूल परी, पूर्ण पराग भरी चंचल है, दोनों दृग मुख है सलोना।
डॉ गुरिंदर गिल - वसल की हर रात लिखती हूँ, हिज्र का इज़हार लिखती हूँ, लिखती हूँ इश्क़ मोहबत, कलम से बस प्यार लिखती हूँ।
शकुन्तला पावनी - लौकिक जगत में राधा कृष्ण का प्रेम मानवी रूप में था, दोनो को इक दुजे का साथ प्रिय।
आनंद जैन - आम्र मंजरी फूली देखत, दुखिया दिल कुम्हलाये रै, भंवरे कविता भले ही बांचें, मन केसे मुस्काये रे।
डॉ मीना कुमारी परिहार - बड़ा संगीन मसला है किसी से कह नहीं सकती, समझ लो सिर्फ इतना बिन तुम्हारे रह नहीं सकती।
मीना गोपाल त्रिपाठी - घर मे नही है दाना पानी, न है पेट भर खाने को, और मधुशाला में भीड़ लगी है अमृत का हाला पाने को।
शेखर रामकृष्ण तिवारी - हम सदा तैयार हैं, अभिव्यक्ति की वंदना से, तुम डटे रहना सिपाही, द्वार पर अपनी वफा के।
डॉ साधना तोमर - प्रेमदीप जला दो अब तो, हो ज्योतिर्मय ये संसार, कहाँ छुपे हो मोहन मेरे, सुन लो करुण पुकार।
पदमा तिवारी - मेरे पास नहीं कुछ मेरा जो भी है सब कुछ है तेरा, मैं तो हो गई तेरी श्याम पडू चरण में सिर धर के।
द्रोपती साहू - निर्झरिणी से मधुर सुर धारूँ, सरिता सी बहती रहूँ स्वच्छंद, कौन सा जतन मैं कर जाऊँ, मेरे अंतर्मन में उठता अंतर्द्वंद्व।
शरद अजमेरा - दिल की दुनिया आबाद तुमसे है, मिलने की फरियाद तुमसे है, बस गए तुम मुझमें या खो गया हूूँ मैं तुममें बदल गई है दुनिया हमारी।
डॉक्टर धारा बल्लभ पांडेय 'आलोक' - स्नेहमयी तू भावमयी तू, तेरी अतुल कहानी, शोभित षड् ऋतुओं की छवि से, बहु भाषाअरु बानी, बहु भाषा संस्कृति के जन-मन, फिर भी एक ही प्रान।
नीलम पांडेय - ऐसा नहीं कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता, हां यह सच है कि मैं प्यार का इजहार नहीं करता, ऐसा नहीं कि मैं तुझसे प्यार नहीं करता।
इनके अलावा मंजुला वर्मा, सुषमा मोहन पांडेय, भावना सावलिया, डॉ रश्मि शुक्ला, मंजुला अस्थाना महंती, रानी नारंग, अंजली तिवारी मिश्रा, सुषमा शुक्ला, सुनीता अग्रवाल, दीपा परिहार दीप्ति, डॉ संगीता पाल, शोभा रानी तिवारी, डॉ अँजुल कँसल"कनुप्रिया", डाॅ उषा पाण्डेय, अर्चना पाठक निरन्तर, निहाल चन्द्र शिवहरे, अख्तर अली शाह "अनंत", उपेंद्र अजनबी, हीरा सिंह कौशल, मीरा भार्गव सुदर्शना, गीता पांडेय, गीता शर्मा, गणेश प्रसाद, विष्णु असावा, वंदना, रमेश चंद्र शर्मा, रविशंकर कोलते, जनार्दन शर्मा, डॉ मेहताब अहमद आज़ाद, गणेश निकम, डाॅ सुशील श्रीवास्तव सागर, गरिमा, शैलजा करोडे, प्रिया उदयन, डॉ. गुलाब चंद पटेल, डॉ. दविंदर कौर, मुन्नी गर्ग, सुनील पांडे, स्मिता धिरासरिया, बलराम सोनी ने भी शानदार रचनाओं की प्रस्तुति की।
साढ़े पांच घंटे तक यह कार्यक्रम चला।
इस कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि सभी एक दूसरे से सीखने की इच्छा रखे।
अलका पांडेय ने बताया कि 6 और 7 जून को 'शहरीकरण प्रहार' विषय पर काव्य पाठ किया जाएगा।

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