बॉलीवुड का क्रेज युवाओं पर सबसे ज्यादा देखने को मिलता है। नाम कमाने की चाह में युवा मुम्बई पहुँच तो जाते हैं मगर यहाँ संघर्ष का सामना हर किसी को करना पड़ता है। मेरठ यूपी के गौरव डागर वैसे तो सॉफ्ट इंजीनियर हैं लेकिन अभिनय की दुनिया में बड़ा नाम कमाने का ख़्वाब लेकर बॉलीवुड की डगर पकड़ लिया। यहाँ आकर जल्दी ही उन्हें पता लग गया कि अभिनय में परिपक्व होने के लिए थियेटर का सहारा लेना जरूरी है।
फिर वह वापस अपने शहर के करीब दिल्ली जाकर थियेटर ज्वाइन कर लिया। बाद में जब लगा कि अब अभिनय की ए बी सी डी थोड़ी बहुत सीख ली तब मुम्बई कमबैक कर लिया। मुम्बई में भी थियेटर में समय देने के साथ साथ उनकी ऑडिशन की प्रक्रिया चलने लगी लेकिन दाल-रोटी और छत के खातिर सीएसटी में टीचर की नौकरी भी करने लगे। प्रसिद्ध रंगकर्मी स्वर्गीय सत्यदेव दुबे के शिष्य राजेश कुमार सिंह के सानिध्य भी गौरव को काफी कुछ सीखने को मिला। उन्हें पहला ब्रेक धारावाहिक 'बाजीराव पेशवा' में मिला फिर 'ये रिश्ते' के कई एपिसोड में भी नज़र आये। अब आगे गौरव टीवी से ब्रेक लेकर फिल्मों की ओर रुख किया। उन्हें मलाला यूसुफजई की बायोपिक 'गुल मकई' में एक पाकिस्तानी पुलिस की भूमिका मिल गई। इसके अलावा वह फ़िल्म मेकिंग की बारीकियों का गहनपूर्वक अध्ययन करने के लिए इस फ़िल्म के निर्देशक अमजद खान के साथ बतौर सहायक भी काम करना शुरू किया। गौरव को शरमन जोशी के साथ एक और प्रोजेक्ट 'फौजी कॉलिंग' हासिल हुई जिसमें वह आर्मी अफसर बने हैं। एक वेब सीरीज 'द फैमिली मैन' में भी वह मनोज बाजपेयी के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाए हैं।
अभिनय करते करते गौरव ने फ़िल्म निर्माण में भी हाथ आजमाते हुए एक शार्ट फ़िल्म 'जानिब ए मंज़िल' के साथ एक निर्माता के रूप में बड़ी पारी की शुरुआत किया है। इस शार्ट फ़िल्म का निर्देशन सागर कुमार ने किया है। इसमें बॉलीवुड के लिए मैसेज छिपी हुई है। फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर एक इंसान के जीवन के अँधेरेपन को इस फ़िल्म के जरिये उजागर करने की कोशिश की गई है। इस फ़िल्म को फेस्टिवल में प्रदर्शित किया जाएगा।
गौरव डागर को लगता है कि बॉलीवुड में रचनात्मकता का अभाव है। जिनके पास सम्पूर्ण साधन है उनके पास कला का अभाव है और जिनके पास कला है उनके पास साधन नहीं है।
वह दुख व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यहाँ सिर्फ व्यापार को ध्यान में रखकर फ़िल्म का निर्माण हो रहा है, क्रिएटिविटी पर फोकस नहीं किया जा रहा है। ऑस्कर और कान्स की पहुंच से हमारा सिनेमा काफी दूर है। फिल्मकार सत्यजीत रे के बाद यह कलात्मक क्षेत्र प्रतिभा शून्य नज़र आती है।
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