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इस देश में अधिकांश युवाओं को बॉलीवुड की चमक धमक बहुत प्यारी लगती है । हर कोई हीरो बनने का ख्वाब संजोए इस माया नगरी में आना चाहता है । ऐसा ही खवाब इटावा शहर में रहने वाले मनसुख चतुर्वेदी की है । वह मुंबई जाकर मशहूर अभिनेता बनना चाहता है । हर समय वह यही सपना देखता है । मनसुख के पिता धनसुख अपने पुत्र के इस आदत से परेशान हैं । वे अपने पुत्र को सही मार्ग पर लाना चाहते हैं । इसलिए अपने पुत्र को सुधारने के लिए उसका विवाह तय कर देते हैं । परंतु उनकी पत्नी उन्होंने बताती है कि उनका पुत्र सपना उर्फ़ मुन्नी को पसंद करता है । धनसुख मुन्नी से मिलता है और उससे अपने पुत्र को सुधारने का प्रस्ताव रखता है यदि वह पंद्रह दिन के भीतर उसमें सुधार लाएगी तो उनका विवाह होगा अन्यथा वह मनसुख को भूल जाये । मुन्नी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है और मनसुख को सुधार देती है परंतु मनसुख सुधरकर वैरागी बन जाता है । अपने पुत्र की यह दशा धनसुख को अत्यधिक विचलित करती है । वह पुनः अपने पुत्र को पहले जैसा बनाने के लिए मुन्नी को कहता है ।
  सचिन गुप्ता द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म की पटकथा कमजोर  है । कहानी का उद्देश्य भी स्पष्ट नहीं है । भाषा का प्रयोग बेहतर है पर कहीं कहीं प्रभावहीन प्रतीत होती हैं । संदीप सिंह ने ठीक ठाक अभिनय कर दर्शकों का मनोरंजन करने की कोशिश की है । बाकी कलाकार शालिनी चौहान , अनामिका शुक्ला और सिकंदर खान का सहयोग भी बढ़िया है ।

- गायत्री साहू

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