गुनगुनी वो धुप मुझे हँसाती है,
सर्द रातें एहसास दिलाती है,
मुस्कुराती सुबहें मुझे जागती है,
वो पल हमेशा याद आती है।
खेले जिस आँगन गुड्डे गुड़ियों के साथ,
मस्ती भरा दोस्तों का साथ,
आम की बौरे और बेरियों के स्वाद,
फूलों क़ी खुशबू से सजा हाथ,
ये सब मुझे गुदगुदाती है,
वो पल हमेशा याद आती।
बिखरे मोती सा मेरा फ़साना ये,
उड़ गयी मैं काटी पतंग की डोर पे,
ठिठके बैठ जाऊँ मैं जिस छोर पे,
वक़्त के साथ रह गयी उसी मोड़ में,
ये सब मुझे रुलाती हैं।
वो पल हमेशा याद आती है।
मुस्कुराती सुबहें मुझे जागती है,
वो पल हमेशा याद आती है।
खेले जिस आँगन गुड्डे गुड़ियों के साथ,
मस्ती भरा दोस्तों का साथ,
आम की बौरे और बेरियों के स्वाद,
फूलों क़ी खुशबू से सजा हाथ,
ये सब मुझे गुदगुदाती है,
वो पल हमेशा याद आती।
बिखरे मोती सा मेरा फ़साना ये,
उड़ गयी मैं काटी पतंग की डोर पे,
ठिठके बैठ जाऊँ मैं जिस छोर पे,
वक़्त के साथ रह गयी उसी मोड़ में,
ये सब मुझे रुलाती हैं।
वो पल हमेशा याद आती है।
- गायत्री साहू
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