
उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों की ही तरह जोरदार जीत हासिल हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया में इसे विकास की जीत कहा है तो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने प्रधानमंत्री के विकास के ‘विजन’ और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतिक कुशलता का परिणाम बताया है। इन औपचारिक प्रतिक्रियाओं को परे रख दिया जाए तो भी यह मानने में किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि इस जीत ने योगी सरकार के सात महीनों के कामकाज पर अपनी मुहर लगा दी है। यों तो योगी की कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा नहीं था लेकिन अपराध बढ़ने तथा कानून-व्यवस्था को लेकर उनके तौर-तरीके पर सवाल उठने लगे थे। ऐसे वक्त आए निकाय चुनावों के नतीजों ने योगी को राजनीतिक तौर पर और मजबूत किया है। इन नतीजों का श्रेय मुख्यमंत्री को इसलिए भी दिया जाएगा कि उन्होंने पूरे प्रदेश में धुआंधार प्रचार किया था, जबकि सपा नेता अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस की ओर से किसी बड़े नेता ने इसमें प्रचार नहीं किया।
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत राजग को इस राज्य की 80 में से 73 सीटें तथा इस साल हुए विधानसभाचुनाव में 403 में से 312 सीटें मिली थीं। केंद्र में भाजपा को सत्तासीन कराने में उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली जबर्दस्त कामयाबी का बड़ा योगदान था। अब सोलह नगर निगमों में से अधिकतर पर काबिज होकर भाजपा ने जहां राज्य में अपनी चुनावी सफलता का क्रम बरकरार रखा है, वहीं आलोचकों को फिलहाल खामोश कर दिया है। राज्य की 198 नगरपालिकाओं में सौ से ज्यादा पर भाजपा ने जीत दर्ज की है, वहीं 438 नगर पंचायतों में से भी ज्यादातर उसी के कब्जे में गई हैं। इसके अलावा, भारी संख्या में भाजपा के पार्षद विजयी हुए हैं। इस चुनाव की खास बात यह रही कि प्रदेश में पिछली बार सत्ता में रही सपा एक भी नगर निगम पर काबिज नहीं हो सकी। कांग्रेस की स्थिति तो और भी खराब है। अलबत्ता बसपा की स्थिति सपा और कांग्रेस से तनिक बेहतर है।
हालांकि नगर निकाय के चुनाव हों या क्षेत्र पंचायतों या जिला पंचायतों के, अक्सर यह देखा जाता है कि सत्ताधारी दल का बोलबाला रहता है। लेकिन इस बार के चुनाव में विरोधी दलों की सुस्ती भी भाजपा की जीत का एक बड़ा कारक बनी है। इस जीत से उत्साहित होकर योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी की भारी विजय होगी। लेकिन राजनीति में डेढ़ साल का समय भी इतना होता है कि गारंटी से कुछ नहीं कहा जा सकता। फिलहाल, उत्तर प्रदेश में भाजपा के जनाधार में कोई दरार नहीं दिखती। विधानसभा चुनाव में चतुराई से साधी गई सोशल इंजीनियरिंग का कमाल कायम है। लेकिन आशंका इस बात की है कि पार्टी कहीं अपनी जीत को राजनीतिक विरोधियों या किसी खास समुदाय के दमन और उत्पीड़न का लाइसेंस न मान ले। विजय के साथ विनय की भी अपेक्षा रहती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा इस तकाजे को याद रखेगी।
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