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गेम ओवर
सनाया सावित्री (गुरलीन चोपड़ा ) एक बिंदास, हसीन और चालाक चोर है जो अपने रघु मामा के साथ मिलकर अमीर, शौकीन और अय्याश बुजुर्ग को अलग अलग रूप लेकर अपने जाल में फंसाते है। यह मामा-भांजी की जोड़ी बहुत चालाक और शातिर है। अपना काम इतनी होशियारी से करते है की उनका शिकार ना तो पुलिस के पास जाने की हिम्मत कर पाता है ना ही किसी अपने को बताने की जुर्रत। अपनी ठगी की दुनिया के बेताज़ बादशाह है दोनों। ऐसी ही उनकी अय्यास बुड्ढो की लिस्ट में शेठ गिरधारी लाल (राकेश बेदी) और रंगीन अवस्थी उर्फ़ रंगीला (राजेश शर्मा) भी शामिल हो जाते है। अपने हुस्न के जाल में फसा कर सनाया इन दोनों को भी कंगाल कर देती है। इस मामा-भांजी की हरकतों से पुलिस इंस्पेक्टर पांडुरंग कदम (यशपाल शर्मा) भी बहुत परेशान है और दोनों को रंगे हाथ पकड़ना चाहता है पर सबूत या गवाह ना होने की वजह से कुछ कर नहीं पाता। अपने रघुमामा के कहने पर सनाया इस ठगी की दुनिया से बहार निकल कर शादी कर के अपना घर बसाने के लिए मान जाती है पर एक शर्त रखती है की वोह एक आखरी गेम खेलेगी जो उसे ज़िन्दगी भर याद रहे। और फिर बस दोनों अपने आखरी शिकार को फ़साने में लग जाते है और एक ऐसे खेल की शुरुआत होती है जिसमे हर मोड़ पर अलग अलग खिलाड़ी जुड़ते रहते है और इसी खेल में एक के बाद एक तीन मर्डर भी होते है।अब सनाया खुद के खेले हुए खेल में बुरी तरह फस जाती है। उसकी खेली हुई हर चाल पे उसे मात मिलती है और एक नए खेल की शुरुआत हो जाती है। तो क्या सनाया जो अपना खेल खुद खेलती है अब किसी के हाथ की कठपुतली बन गयी है या फिर हर खेल की मास्टर-प्लानर कोई ऐसा दाव खेलेगी की सब को चारो खाने चित कर देगी? फिल्म का अंत हर एक चाल का जवाब देता है और हर रहस्य से परदा उठाता है।


गेम-ओवर के लेखक और निर्देशक परेश विनोदराय सवानी है जिसने हर एक पात्र का चुनाव बड़ी ही ज़िम्मेदारी के साथ किया है। गुरलीन चोपरा जो अपने पंजाबी, तेलुगु, तामील, हिन्दी फिल्मो में सीधे- सादे रोल के लिए जानी जाती है वोह गेम-ओवर में पहली बार एक बिंदास और हॉट लुक में सब को दंग कर देगी। गुरलीन ने अपने सनाया सावित्री के बोल्ड किरदार को बड़े ही सहजता से निभाया है जो आप को १९८०-९० की श्रीदेवी की याद दिला जायेगा। फिल्म का सब से अलग और रोमांचक किरदार रंगीन अवस्थी – रंगीला है  जो निभाया है राजेश शर्मा ने। ऐसे किरदार निभाना बहुत कठिन है और एक बड़ी चुनौती भी। लेकिन राजेश शर्मा ने यह काम बड़ी आसानी से किया है और दर्शको के ऊपर एक अलग छाप छोड़ कर जाएगा। यशपाल शर्मा पुलिस इंस्पेक्टर पांडुरंग कदम के एक नये अंदाज़ में दिखेंगे जो अपने बेबाक संवाद से दर्शको को बांध कर रखेंगे। राकेश बेदी ने एक अय्याश बुजुर्ग का किरदार निभाया है और अपने करियर में पहली बार इतना बोल्ड रोल किया है जो काबिले तारीफ़ है। फिल्म के बाकी कलाकार फाल्गुनी राजानी, उमेश बाजपाई, अरहाम अब्बासी, प्रसाद शिखरे, जीशान खान, अली मुग़ल और प्रवेशिका चौहान ने भी अच्छा अभिनय करके अपने किरदार के साथ न्याय किया । फिल्म में बहुत सारे बोल्ड सीन है जो फिल्म की कहानी का अहम् हिस्सा है और अच्छे से दिखाये गए है जो कही से वल्गर नहीं लगते। फिल्म के लेखक और निर्देशक परेश सवानी ने यह बात का ख़ास ध्यान रखा है की फिल्म में नग्नता और वल्गारिटी का कोई स्थान ना रहे और फिल्म आम जनता को सिर्फ साउथ-इंडियन फिल्म की तरह मनोरंजक लगे। फिल्म का सब से अच्छा पहलु है फिल्म के डायलोग, जो बहुत ही दमदार है और कहानी के लिए जरुरी भी। फिल्म के लोकेशन बहुत ही आकर्षक है जो पहली बार हिन्दी फिल्म में देखने को मिलेंगे। फिल्म का संगीत फिल्म की स्टोरी के हिसाब से है और दर्शको को जरूर पसंद आयेगा। बाकी सारे पहलू में भी गेम-ओवर उम्दा है और दर्शको को मनोरंजक लगेगी । फिल्म का प्रमोशन भी ठीक-ठाक है और फिल्म भारतभर में 800 से भी ज्यादा सिनेमाघर में रिलीज़ हुई है।

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