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मुम्बई। गोरेगाँव स्थित दादा साहेब फाल्के चित्रनगरी (फिल्मसिटी स्टूडियो) में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के की 153वीं जन्मजयंती के अवसर पर फिल्मसिटी स्टूडियो प्रबंधन द्वारा आयोजित समारोह में दादासाहेब फाल्के के पोते चंद्रशेखर पुसलकर अपने पूरे परिवार के सदस्यों के साथ, अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस समारोह में भारतीय फिल्म जगत से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, बॉलीवुड के नामचीन शख्सियतों व महाराष्ट्र सरकार के प्रशासनिक पदाधिकारियों के अलावा देश के अन्य राज्यों से आये लोगों ने दादा साहेब फाल्के की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। महाराष्ट्र के चर्चित समाजसेवी व फिल्ममेकर डॉ अनिल काशी मुरारका ने माल्यार्पण के पश्चात जन्मजयंती के अवसर पर केक काटकर दादा साहेब फाल्के की मौजूदगी का एहसास कराया। इस मौके पर बॉलीवुड में चार्ली2 के नाम से मशहूर हीरो राजन कुमार दादा साहेब फाल्के के युवा अवस्था के गेटअप में समारोह में उपस्थित अतिथियों का मनोरंजन करते नज़र आये। साथ ही साथ दादा साहेब फाल्के के गेटअप में ही लघु फिल्म 'वांछा-द ब्लैक डिजायर' का ट्रेलर भी उपस्थित जनसमूह के बीच जारी किया। इस अवसर पर कैफ अवार्ड आयोजन समिति के आयोजक रविन्द्र अरोड़ा और सुधीर तारे के द्वारा फिल्म विधा से जुड़े नवोदित प्रतिभाओं को ट्रॉफी दे कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के अंत में बी एफ सी पब्लिक्शन्स (लखनऊ) द्वारा प्रकाशित लेखक कफीलूर रहमान की नवीनतम उपन्यास 'अर्धनारी' का विमोचन भी संपन्न हुआ। इस दौरान 'अर्धनारी' की सार्थकता को बल देने के उद्देश्य से विलक्षण प्रतिभा के धनी हीरो राजन कुमार स्वरूप परिवर्तन कर 'किन्नर' के गेटअप में जनसमूह के बीच प्रकट हुए और उपन्यास 'अर्धनारी' की नायिका अमृता के कैरेक्टर पर प्रकाश डाला। इसी क्रम में उन्होंने फिल्म निर्माण के शुरुआती दौर में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के को महिला कलाकार नहीं मिलने के कारण आई परेशानियों का भी जिक्र किया और कहा कि उनके दौर में पुरुष कलाकार ही फीमेल कैरेक्टर को निभाया करते थे। मेरा सौभाग्य है कि उनके 153वीं जन्मजयंती के अवसर पर दो गेटअप में उनके चाहनेवालों के बीच आने का मौका मिला।   
भारतीय सिनेमा के जन्मदाता दादासाहब ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने 19 साल के करियर में दादा साहब ने 121 फिल्में बनाई, जिसमें 26 शॉर्ट फिल्में शामिल हैं। दादा साहेब सिर्फ एक निर्देशक ही नहीं बल्कि एक मशहूर निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। उनकी आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी और आखिरी फीचर फिल्म 'गंगावतरण' थी। उनका निधन 16 फरवरी 1944 को नासिक में हुआ था। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1969 में 'दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड' देना शुरू किया। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। सबसे पहले यह पुरस्कार पाने वाली देविका रानी चौधरी थीं। 1971 में भारतीय डाक विभाग ने दादा साहेब फाल्के के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया। भारतीय सिनेमा का कारोबार आज करीब डेढ़ अरब का हो चला है और हजारों लोग इस उद्योग में लगे हुए हैं लेकिन दादा साहब फाल्के ने महज 20-25 हजार की लागत से इसकी शुरुआत की थी। विदित हो कि दादासाहब फाल्के का असल नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के त्रिम्बक (नासिक) में एक मराठी परिवार में हुआ था। दादा साहब फाल्के ने ना सिर्फ हिंदी सिनेमा की नींव रखी बल्कि बॉलीवुड को पहली हिंदी फिल्म भी दी।
आज भले ही दादा साहेब फाल्के हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज भी उनका संदेश व उनके संघर्षों को बयां करते पदचिन्ह, भारतीय फिल्म जगत के फिल्मकारों को कर्मपथ पर धैर्य के साथ अग्रसर रहने के लिए सदैव प्रेरित करता है और युगों युगों तक करता रहेगा।

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