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मुम्बई। राजस्थान की तपती रेत को रौंदकर मायानगरी मुम्बई तक पहुंचने वाली लेखिका पूजाश्री अपने साहित्य में भारत की कला संस्कृति को संरक्षित करते हुए फ़िलवक्त उसके प्रचार प्रसार में गतिशील हैं। हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में 18 से अधिक पुस्तकों को सृजित करने वाली पूजाश्री का जन्म 29 मार्च 1951 को हुआ था। बचपन से ही विचारों को, भावनाओं को अपने शब्दों से स्वरूप प्रदान करने वाली पूजाश्री मास्टर ऑफ आर्ट्स में साहित्यरत्न हैं। हिंदी, संस्कृत, राजस्थानी, उर्दू और मराठी भाषा पर पूर्ण अधिकार रखती हैं। साथ ही साथ आज के हिंदी साहित्य में सर्वोच्च स्थान रखती हैं। पूजाश्री निर्भीकता से अपनी लेखनी से समाज की कुरीतियों, नीतियों पर प्रहार करने से भी नहीं चूकतीं और अपनी साहित्यिक यात्रा जारी रखी हुई हैं।

 'पनघट'(काव्य संग्रह), 'रेखाएं' (काव्य संग्रह), 'रेत है रातनालीअ' (राजस्थानी काव्य संग्रह), 'नारी यदि चाहे तो' (कहानी संग्रह), 'मेरे आराध्य' (भक्ति काव्य संग्रह), 'देश मेरे' (देश भक्ति गीत), 'राम कथा और तुलसीदास' (गद्य व पद्य), 'प्रणय पराग' (काव्य संग्रह), 'छद्मवेश', 'ओलख रा उजियारा' (राजस्थानी कहानी संग्रह), 'शुभ मंगल' (राजस्थानी काव्य संग्रह), 'तिश्नगी' (नज़्म संग्रह), 'रोसनी री सुई' (राजस्थानी कविता संग्रह), 'ज़िंदगानी री जोगण' (राजस्थानी कविता संग्रह), 'अभिलाषा' (सरस अखंड काव्य), 'मेलो' (राजस्थानी), 'वंदे मातरम बाल साहित्य बाल साहित्य (राजस्थानी), 'सत्यमेव जयते' (हिंदी) और 'योग कवंल' (योग पर रचनाएं हिंदी) जैसी कई पुस्तकें पूजाश्री की, पाठकों तक पहुंच चुकी है। पूजाश्री की तीन अन्य पुस्तकें वर्तमान समय मे प्रकाशाधीन हैं।

 पूजाश्री को उनकी लेखकीय गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए, मानस संगम (कानपुर) द्वारा साहित्य पुरस्कार, राष्ट्रीय आत्मा स्मारक द्वारा श्रीमती जय देवी शुक्ला पुरुस्कार, राजस्थानी गीतों के लिए जनपदीय सम्मान और मानव कल्याण संघ (साहित्य लोक) प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश द्वारा सहित्यश्री पुरस्कार, हम सब संस्था (ठाणे, महाराष्ट्र) द्वारा सार्वजनिक सम्मान, अखिल भारतीय सहियकार अभिनंदन समिति (मथुरा, उत्तरप्रदेश) द्वारा कवियत्री महादेवी वर्मा सम्मान, साहित्यकार सम्मेलन (उज्जैन) द्वारा सम्मान पत्र, महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी द्वारा मुंशी प्रेमचंद साहित्य पुरुस्कार, नारायणी साहित्य अकादमी (दिल्ली) द्वारा नारायणी सम्मान और कई तरह के पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। देश विदेश के सभी मुख्य पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी और अपनी प्रथम मंचीय रचना मुम्बई की धरती पर पढ़ने वाली और साहित्य की मीरा के नाम से ख्याति प्राप्त लेखिका पूजाश्री हिंदी साहित्य की वर्तमान दशा को देख कर काफी व्यथित व विचलित नज़र आती हैं। पूजाश्री ने साहित्य के माध्यम से सेवा समर्पण सहयोग सदभावना युक्त संदेश लोगों तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया और उनका संघर्ष आज भी जारी है।

 बकौल पूजाश्री आज अंग्रेजी का बोलबाला है। नई पीढ़ी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ कर निकाल रही है। वैसे आज के दौर में हिंदी साहित्य पाठ्यक्रमों से बाहर निकलता प्रतीत होता है, ये शुभ संकेत नहीं है। मैं अपना समय ज़िन्दगी सबकुछ साहित्य को अर्पण कर चुकी हूँ। मेरी इच्छा है कि संदेशपरक साहित्य पाठकों तक पहुंचे। जिसका घोर अभाव आज के दौर में दिखाई देता है फिर भी अंतिम समय तक मैं साहित्य के माध्यम से समाज की सेवा करती रहूँगी।

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